बस्तुतः येही वो पूर्ण विराम है जहाँ यात्रा समाप्त होता है...
जीवन में हर कुछ ब्लैक एंड व्हाइट नही होता
कभी कभी shades of grey भी होते हैं
चेहरे पे भले दिखती हो हँसी
मन के किसी कोने में हम फुट फुट कर रोते हैं
मुझे पता नहीं की जिन्दगी की सकरी गली में
मैं कैसे जाऊंगा अंहकार के मुकुट को पहने हुए
इसे सर से उतारने को मैं बेचैन हूँ
करो मदद मेरी की मैं पार कर सकूँ ये रास्ता
और एक हो जाऊँ उस प्रेम के प्रकाश पुंज में
जहाँ दो से परे आनंद प्राप्त होता है
बस्तुतः येही वो पूर्ण विराम है जहाँ यात्रा समाप्त होता है...
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