मेरी लड़ाई ख़ुद के ही कमजोरियों से है
न रूपया ही कमाया है न पोक्केट में डॉलर है
हालत का मारा ये कोई इस्कोल्लर है
जिसकी आदत में शोध है इबादत में शोध है
और शोध ही बसा है हर दिल के कोने में
है फंसा इस जाल में कुछ इस तरह से ये
अभी बाकी बहुत है वक्त आजाद होने में
मुझे भी इसी रोग का अटैक हो गया
जीवन में जो सुकून था कहाँ वो खो गया
ऐसे में भी यहाँ कुछ लोग बसते हैं
हालत बुरे आपके तो कशीदे कसते हैं
मालिक जो बनने का इन्हे चढ़ गया शुरूर
मौजूद था जो मैं हुए ख्वाब चकनाचूर
मैं अपनी उसूलों से समझौता नहीं करता
तुम कोई भी हो तोप तुमसे मैं नही डरता
ये दुनिया बहुत बड़ी है फिर काहे का ये घमंड
लड़ना गर जो तुमको तो ब्रह्माण्ड है अखंड
मेरी लड़ाई ख़ुद के ही कमजोरियों से है
जिससे मैं जी चुराता हूँ उन्ही चोरियों से है
हर एक कदम मेरी आगे की तयारी है
आज भी ख़ुद से मेरी वो ज़ंग जारी है
मैं गिरता हूँ कई बार और फिर सम्हलता हूँ
झाड़ के फिर धुल आगे को निकलता हूँ
मेरी हर रचना इसी ज़ंग की कुछ अर्ध विराम है
मेरी अनुभवों की चिट्ठी , व्यक्तित्व के आयाम हैं
हुआ फैसला नहीं फिर क्यूँ मान लूँ मैं हार
जीता नहीं है जग हारा हूँ मैं नहीं
समयचक्र: चिठ्ठी चर्चा : आपकी चिठ्ठा : मेरी चिठ्ठी चर्चा में
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