माँ का प्यार बोरी में भी कहाँ समाता है.............
आज कोई बेटा जब रेलवे स्टेशन जाता है
पिता के हाँथ में बोरी देख घबराता है
पिता को ऐसे घूरता है जैसे गब्बर कालिया को
और कह रहा हो की पुरा इज्ज़त मिट्टी मा मिलायिदिये
पर माँ का प्यार बोरी में भी कहाँ समाता है
ट्रोली बैग में बेटा सिर्फ़ सैम्पल आता है
तुम्हारा गुस्सा बेबजह पिता पे जाता है
अरे वो तो माध्यम है जो माँ का मम्त्व तुम तक पहुचाता है
बाप के वात्सल्य का कर्ज बेटा क्या इस तरह चुकता है
मैं जवाब मांगता नहीं पर भावनाओं का कोई आकार नही होता
बोरी हो या बैग मेरे विचार से आपके इज्ज़त पर अत्याचार नहीं होता .....
माँ के प्यार की कोई सीमा नहीं होती और ना ही नाप तौल ...सच ही तो है ...आपकी रचना बेहद प्रभावशाली है
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