संचित ये पाप को , गंगा न धो पायेगा














अगर पेड़ नहीं होंगे 
तो छाँव कहाँ होगा 
शहर ही शहर होंगे 
तो गाँव कहाँ होगा 
तब विलाप करना भी काम न आएगा 
संचित ये पाप को , गंगा न धो पायेगा 
चेतावनी विधाता का , समझना जरूरी है 
पर्यावरण संरक्षण ही अस्तित्व की धूरि है 








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