31 July, 2015

ये न कहना कुछ कमी थी पूर्वजों के खून में










बेच कर ज़मीर अपना चल पड़े गुरूर में 

शेष जो आदर्श था उसे झोंक कर तंदूर में 
तर्क बस इतना की अब तो ये समय की मांग है 
थक गए हैं रेंगते, लगाना लम्बी छलांग है
ज्ञात रहे गिर न जाओ अपने ही जूनून में 
ये न कहना कुछ कमी थी पूर्वजों के खून में 

29 July, 2015

श्रद्धांजलि










न जन्म न मृत्यु बस शुद्ध आत्मा 
करोड़ों के आँखों में छलका गया आंसूं 
और कर्म ऐसा की, है विश्व नतमस्तक
इतिहास में अंकित वो ज्ञान पिपासु 
कोई ख़ास नहीं वो, है आदमी वो आम
भारत के विचारों को दिया नित नया आयाम
कोई एपीजे कहता है , कहता कोई है कलाम 
उस कर्मयोगी को है मेरा दंडवत 
जीवन ही जिसका है एक सत्य शाश्वत 

24 July, 2015

निज यात्रा मेरी ये ईश्वर की कारवां है .................














आवाज़ देने पर भी आया नहीं जो कोई
चलता रहा मैं युहीं अंजान उन राहों पर
जो धुप की तपिश थी और छांव की शीतलता
मलता रहा मैं उनको, राह की घावों पर
कभी मौन के उत्सव में, कभी शोर में अकेला
कभी मखमली घांसों पर कभी धुल से मैं खेला
पर उसकी योजना का अभिव्यक्ति मात्र मैं था
जो चल रहा था मेरे हमसफ़र की भाँती
मेरे विचार थोथे, की अकेला मैं हूँ
वो था हमेशा युहीं जैसे दीया और बाती
ऊर्जा का श्रोत वो तो संघर्ष फिर कहाँ है
निज यात्रा  मेरी ये ईश्वर की कारवां है .................