10 September, 2015

मिलता नहीं कन्धा कोई आंसू बहाने को

क्या युद्ध ही  बस एक अंतिम प्रयाय था
या उससे परे  अन्य  भी  कोई उपाय था 

संवाद कृष्ण का दुर्योधन से भी हुआ 
और बोल गया वो कलयुग के सत्य को 
की जानता हूँ मैं मर्म धर्म का 
अंतर्मन मेरा अनुसरण को तैयार नहीं है 
अधर्म ज्ञात है मुझे पर क्या करूँ प्रभु 
उससे निवृत होने का विचार नहीं है 
और आप मधुसूदन मेरे ह्रदय में हैं 
करता वही मैं हूँ , जो मुझसे कराते आप 
अब आप ही जानो क्या पुण्य क्या है पाप  

हम आज भी कह देते हैं की ज्ञान मत दो यार 
अपना कोई जब आता है रास्ता दिखाने को 
अहंकार से भरे बस संवाद होते हैं 
फिर मिलता नहीं कन्धा कोई आंसू बहाने को 


पांडव गीता/प्रपन्न गीता के श्लोक से प्रेरित 



18 August, 2015

कोई दुश्मन नहीं ईश के अंश सभी
















छोटा मन लेकर कैसे जीतोगे तुम 
दुनिया की हर बाधा और कठनाई को 
जो चश्मा है आँखों पर संदेह भरा 
कैसे समझोगे दिल के गहराई को 

कलयुग का ये फेर नहीं तो और क्या है 
सब अपनों को हमने किया पराया है 
अपने धुन में इतने घाव किये हमने 
वक्त का मरहम भी न उसे भर पाया है 

कोई दुश्मन नहीं ईश के अंश सभी 
समझ समझ का फेर  आँखों का धोखा है 
ये तो  अपनी ही बनायी  दीवारें हैं 
जिसने हमको अनायास ही रोका है 




15 August, 2015

जश्न आज़ादी का
















आज़ादी के जश्न के आयाम को समझो
जो मर मिटे उनके बलिदान को समझो 
समझो की माँ भारत है , संतान हम सभी 
उस सभ्यता महान के प्राण हम सभी 

चलो की साथ कोई अपना न पराया 
सब ने जो मिलके एक कदम भी जो बढ़ाया
बढ़ेंगे असंख्य कदम  देश के विकास में
बिलम्ब हो न कोई अब इस प्रयास में











10 August, 2015

उसी ईश के अंश सभी

उसी ईश के अंश सभी ,कोई ज्यादा न कोई कम है 

जो प्रोत्साहित करे 
और जो पीड़ परायी जाने 
और जो तुममे निहित है ऊर्जा 
उसको भी पहचाने 
हमदर्दी  (sympathy ) जो दिखलाये 
उस पर बिस्वास न करिये 
समानुभूति (empathy)  आदर्श हो 
जिनका  उनके साथ विचरिये 


जीवन को विष कर देंगे
रहना तुम उनसे दूर 
जो करे तुम हतोत्साहित 
और बस संदेह  भरपूर 
जिनका काम महज इतना 
की खामियों को गिनवाएं 
धयान रहे उनकी परछाईं 
के भी निकट न जाएँ 

अब युग नहीं की निंदक को हम आस्तीन में पालें
और अपना बुद्धि विवेक करदें औरों के हवाले 
उसी ईश के अंश सभी ,कोई ज्यादा न कोई कम है 
दुर्बल नहीं कोई है यहाँ बस मन का मात्र भरम है  

02 August, 2015

प्रमाण








क्या क्या प्रमाण दूँ मैं दुनिया के मंच पर
अब उठ गया विश्वास है इस क्षल प्रपंच पर 
दर्पण को दूँ प्रमाण की दीखता  हूँ मैं सुन्दर 
लोगों को ये प्रमाण भरा ज्ञान है अंदर 
और प्रमाण ये की मैं कितना सच्चा हूँ 
माँ बाप को प्रमाण की मैं अच्छा बच्चा हूँ 
गुरु को भी तो प्रमाण की हूँ मैं आज्ञाकारी 
और साथियों को ये प्रमाण की मैं हूँ  क्रांतिकारी 
प्रमाण की निर्दोष हूँ मैं हर लड़ाई में 
और प्रमाण ये भी की अब्वल हौसलाअफजाई में 
क्या अस्तित्व महज मेरा है ढूंढना प्रमाण
या इसके  परे और भी कोई मेरी है पहचान 
संशय की इस घड़ी में दया का पात्र मैं  
या किसी बड़े उद्देश्य का हूँ निमित मात्र मैं 
है ज्ञात नहीं मुझको कृष्ण आप बताएं 
अर्जुन की तरह मुझको भी अब राह दिखाएँ ............

01 August, 2015

गुरु मुख से जो पाया ज्ञान अर्जुन तू बड़भागी है










भ्रम की जाल जो काट दे और कर दे सत्य प्रत्यक्ष

और इशारा कर दे ताकि ज्ञात हो अंतिम लक्ष्य

जैसे कृष्णा ने अर्जुन के माया के जाल को काटा

युद्धभूमि में भी जीवन के सारतत्व को बांटा

माना युद्ध भूमि में नहीं मैं, न शत्रु ही हावी है

अंतर्मन का युद्ध निशचय ही मायावी है

गुरु मुख से जो पाया ज्ञान अर्जुन तू बड़भागी है

वही ज्ञान पाने की अब इक्षा मन में जागी है

जैसा गुरु मिला तुमको क्या मुझको मिल पायेगा

मेरे मन के कुरुक्षेत्र में क्या कृष्ण कोई आएगा

31 July, 2015

ये न कहना कुछ कमी थी पूर्वजों के खून में










बेच कर ज़मीर अपना चल पड़े गुरूर में 

शेष जो आदर्श था उसे झोंक कर तंदूर में 
तर्क बस इतना की अब तो ये समय की मांग है 
थक गए हैं रेंगते, लगाना लम्बी छलांग है
ज्ञात रहे गिर न जाओ अपने ही जूनून में 
ये न कहना कुछ कमी थी पूर्वजों के खून में 

29 July, 2015

श्रद्धांजलि










न जन्म न मृत्यु बस शुद्ध आत्मा 
करोड़ों के आँखों में छलका गया आंसूं 
और कर्म ऐसा की, है विश्व नतमस्तक
इतिहास में अंकित वो ज्ञान पिपासु 
कोई ख़ास नहीं वो, है आदमी वो आम
भारत के विचारों को दिया नित नया आयाम
कोई एपीजे कहता है , कहता कोई है कलाम 
उस कर्मयोगी को है मेरा दंडवत 
जीवन ही जिसका है एक सत्य शाश्वत 

24 July, 2015

निज यात्रा मेरी ये ईश्वर की कारवां है .................














आवाज़ देने पर भी आया नहीं जो कोई
चलता रहा मैं युहीं अंजान उन राहों पर
जो धुप की तपिश थी और छांव की शीतलता
मलता रहा मैं उनको, राह की घावों पर
कभी मौन के उत्सव में, कभी शोर में अकेला
कभी मखमली घांसों पर कभी धुल से मैं खेला
पर उसकी योजना का अभिव्यक्ति मात्र मैं था
जो चल रहा था मेरे हमसफ़र की भाँती
मेरे विचार थोथे, की अकेला मैं हूँ
वो था हमेशा युहीं जैसे दीया और बाती
ऊर्जा का श्रोत वो तो संघर्ष फिर कहाँ है
निज यात्रा  मेरी ये ईश्वर की कारवां है .................

    22 March, 2015

    आशीर्वाद

    मुझे बस तुम्हारा आशीर्वाद चाहिए 
    नचिकेता को यम से जो ज्ञान था मिला  
    मुझे तुमसे वैसा ही संवाद चाहिए 
    मैं न प्रह्लाद हूँ , न अर्जुन सा गुणी
    न हूँ जैसे थे ज्ञानि ही नारद मुनि 
    है विनती अनुभव हो वो सत्य शाश्वत 
    स्वीकार करो मेरा तुम मौन दंडवत  

    19 March, 2015

    डार्विन

    मैंने जो दुनिया देखि , अपने आँखों से 
    उसमे तो डार्विन के विचार ही हावी हैं 
    जो कहता है की अगर तुम्हे है जीना यहाँ 
    तो विकल्प नहीं, संघर्ष अवस्यम्भावी है  

    13 March, 2015

    तथास्तु


















    तथास्तु

    सुना है मैंने असंख्य मुख से 
    लेता है उपरवाला परीक्षा 
    और सुना है ये भी , हमारा क्या है 
    रखे वो जैसे ,उसकी हो इक्षा 
    ​परीक्षा नहीं अपितु स्वइक्षा है 
    जो सोंचते हो, वही है मिलता 
    विचारों के प्रबल नीव पर ही 
    कोई कमल का है फूल खिलता
    है उसकी ललक, या विषय वस्तु है 
    वो कृपा जो करदे तो तथास्तु  है 

    06 March, 2015

    होली

    श्याम स्वेत के अलावा रंग कौन सा लिखूं 
    सोंचता हूँ होली पे प्रसंग कौन सा लिखूं 
    यादें कई कैद है ह्रदय के किसी कोने में 
    ख़ुशी अपार होती थी साथ सबके होने में 
    माँ के हाँथ उठते थे चन्दन और आशीर्वाद को 
    भुला नहीं सुंगंध और उन असंख्य स्वाद को 
    अभी भी होती होली है, वही रंग है गुलाल है 
    अपनों से दूर होने का मन में बड़ा मलाल है

    03 March, 2015

    इस मझधार में एक तेरा ही सहारा है










    मैंने खुद ही किये थे बंद अपने दरवाजे
    ये जानते हुए की मिलने को तैयार हो  तुम 
    ये सच है, गया था भूल  दुनियादारी में 
    की मैं तो कठपुतली, सूत्रधार हो तुम 
    तुम तो हो विक्रम , विचारों से बैताल हूँ मैं 
    मौन रहते हो तुम, आदत से वाचाल हूँ मैं 
    समय नहीं है ,न मतभेद की गुंजाइश  है 
    करोगे पूर्ण क्या आखरी ये मेरी ख्वाइश है 
    अब तुम्हारे सिवा कुछ नहीं गंवारा है 
    इस मझधार में एक तेरा ही सहारा है 

    01 March, 2015

    मुखौटा













    अंदर के बगावत पर बुद्धि का लगा पहरा 
    और खो गया फिर से , असली था जो चेहरा 
    रावण के तो दस सिर थे, मेरे तो हज़ारों हैं
    दीवारों के नहीं हैं कान,कानो में दीवारें हैं 
    खुद को ही तो हमने, जंजीरों में जकड़ा है
    जिसको देखो वो ही अहंकार में आंकड़ा है 
    ये जो मुखौटे हैं इन्हे आज उतरने दो 
    इस बार विधाता को वो चेहरा गढ़ने दो 
    फिर पाओगे एक हैं सब ,नहीं कोई अलग है भाई 
    कण कण उसकी ही छवि, उसकी ही है परछाईं . 






      








    23 February, 2015

    अपनों का ही साथ न हो तो मोल क्या है जीवन का

    रिश्ते हैं नाजुक धागे से प्रेम का हैं ये बंधन 
    शोभता है उन्नत ललाट पर लगा हुआ ही चन्दन 
    शिकन ललाट न आने देना, न करना दिल छोटा 
    संभव है जो सुबह था भुला, शाम है घर को लौटा 
    न्याय नहीं होगा रिश्तों पर, तर्क का बोझ जो डाला  
    मन के मनमानी से ज्यादा ह्रदय ने उसे सम्हाला 
    फूल करे माली से बगावत होगा क्या उपवन का 


    अपनों का ही साथ न हो तो मोल क्या है जीवन का 

    21 February, 2015

    काबिल हो तो कोई जुगाड़ तो ढूंढ के लाओ ...










    साथ चले थे , हम फिर भी रह गए अकेले
    तुमने खूब मक्खन लगाया मैंने पापड़ बेले 
    हो तुम कहाँ आज और मैं वहीँ चौराहे पर 
    गाल हमारे जड़ा समय ने ऐसा थपड़
    पढ़े साथ थे आये भी अव्वल थे हमेशा 
    नहीं ज्ञात था कठिन बहुत है नौकरी पेशा
    ज्ञान तो है पर नहीं पैरवी ठोकर खाओ 
    काबिल हो तो कोई जुगाड़ तो ढूंढ के लाओ ...

    14 February, 2015

    गुण दोष











    गुण दोष के आकलन से निकलो बाहर
    हो सके तो दो कदम तो मेरे साथ चलो 
    माना की कुछ कमी है ,कुछ खामियां है 
    संभव हो तो डाल हांथों में हाँथ चलो 
    सुख दुःख हैं सिक्के के दो पहलु भाँती 
    वक्त जैसा भी हो वो तो गुजर जाता है 
    रहे ये याद की ये भी तो सच्चाई है 
    समय पे साथ जो बस याद वही आता है 
    मुझे तो आसरा है उसका, अपनी जमती है 
    जो दूर कहीं बैठा कैलाश पर्वत पर 
    आमंत्रित किया है मैंने उसको अपने यहाँ 
    चर्चा चाय पे नहीं बेल के शरबत पर ....

    10 January, 2015

    अपने दीपक आप बनो















    हाँथ तुम्हारे है सब कुछ
    पूण्य बनो या पाप बनो
    जीवन को दिशा देने वाले
    या फिर तुम पश्चाताप बनो

    है तेरे कंधो पर ही टिकी
    उम्मीद की परिवर्तन होगा
    बाहर कितना भी कोलाहल
    पर अंदर चैन अमन होगा

    घनघोर तिमीर छट जाएगा
    सूरज फिर  बाहर आएगा
    हो सके तो वो प्रभात बनो
    तुम अपने दीपक आप बनो