31 May, 2009

मैं ढूँढता हूँ मौन में जीवन के सार को ....................


हर मोड़ सीखती है जीवन के कुछ नियम

कुछ खट्टी मीठी यादें , कुछ आड़ी तीर्क्षी क्रम

दुनिया विकल्पों की खुलती है बार बार

आजादी चयन की , तुम्हारा ही अधिकार

हर एक पल जो बीतती इतिहास हो जाती

जो पल हमारे पास न , भविष्य कहलाती

जो अंतराल बीच का है उसी का महत्व

उस अन्तराल में छीपा जीवन का सार तत्व

मेरा जो संचित अनुभव वो कहता है बस येही

जो है हमारे हांथ वो ये पल और कुछ नहीं

तो मनको ज़रा बतादो कलाबाजी कम कर

हर बात उठती वहां तो हामी न भरे

मैं ढूँढता हूँ मौन में जीवन के सार को

आकर देता हूँ मैं उसी के विचार को

उसकी हो इक्षा पुरी , मेरा भी लक्ष्य है

मेरे जीवन में निहित इश्वर प्रत्यक्ष है

26 May, 2009

हे कृष्ण कब होगा तुम्हारा आगमन


अर्जुन भी घबराया था देख कर


की युद्घ अपनों से ही करना है


और तब कृष्ण ने जो समझाया


वही उवाच कालांतर में गीता कहलाया


मैं भी आज का अर्जुन कृष्ण को तलाश रहा हूँ


जीवन के युद्घ भूमि पर मेरा सारथि न होने पाए मेरा विचलित मन


हे कृष्ण कब होगा तुम्हारा आगमन ................

24 May, 2009

संगीत जो बजाता रचयिता ..................


जिन्दगी की कहानी येही है

जो होता वो होता सही है

मन है जो बताता है तुमको

हार जाना सही तो नही है

पर मानना मेरे दिल का है इतना

हार के बाद ही तो जितना है

हार से हार जाना बुरा है

हार के बिना जीत अधुरा है

जिन्दगी के रस्ते सरल है

हर समस्या जो है उसका हल है

बात इतनी उतारो जेहन में

स्वीकार करो हर पल जीवन में

प्रतिकार ही समस्या का जड़ है

स्वीकार समस्याओं का पतझड़ है

सावन को जीवन में आने दो

हर कली को फूल बन जाने दो

संगीत जो बजाता रचयिता

उसपे अपने पावं थीरक जाने दो......................


23 May, 2009

डर के बाद जीत है


उस राह पर मुझे जाना है


जिसपर जाने से डरते हैं लोग


मुझे अच्छा लगता है जब मेरे


आत्मविश्वास से टूटते हैं धारणाएं


और फिर जुड़ती है संघर्ष की अनेक कथाएँ जीवन से मेरी

मेरे इन कथाओं में मेरी सफलता की बात है

पर हर अन्धकार को चीरती सूर्योदय का प्रकाश है

मेरे कहानी में अन्धकार मेरे मन की मनमानी है

और सूर्योदय मेरे आत्मविश्वास की निशानी है

हर डर के बाद जीत है

हार मेरे स्वाभाव से भली भाति परिचित है .....................

मेरे लिए रास्ते की समस्यायें अर्ध विराम है


मेरी जिंदगी एक अधूरी कविता तो नही

एक संगीत है जिसमे निरंतर बहाव है

चट्टानों से टकराना और उनकी ललाट पर छाप

छोड़ जाना मेरा स्वभाव है

रास्ते बनते जाते हैं और मैं बढ़ता जाता हूँ आगे

सागर के विस्तार को पाने

अपना वजूद को सागर का हिस्सा बनाने

मेरे लिए रास्ते की समस्यायें अर्ध विराम है

साधन की पवित्रता मेरे मंजिल को देते नया आयाम हैं

मैं पथिक बन जीवन को गले लगता हूँ

पथरीले रास्ते को भी सुगमता से पार कर जाता हूँ

मेरे स्वाभाव में पूर्णविराम मरना है

मेरा एक मात्र लक्ष्य जीवन पथ पर आगे बढ़ना है..............

15 May, 2009

हम बिहारी थूक कर नहीं चाटते ..................


तुम्हे सौंप दिया मैंने जो था नही मेरा


चौपट थी नगरी छाया था अँधेरा


ऐसे मैं कैसे कोई खुल कर जीता


कितने समय खून घुट घुट कर पीता


आक्रोश भरा अंदर आंखों में था बिश्वास


जलेगी लंका अंहकार की ये भी था आभास


अब सर झुका के तुमको करना है ये स्वीकार


फैला रखा था तुमने आतंक अत्याचार


और साथ में जो तुमने पाला था शिखंडी


वो तो निकला तुमसे बड़ा घमंडी


पर उसको जो आदत ऊँगली करने की


लोगों के अंदर जहर भरने की


मुस्किल हो रहा अब है लंगोटी सम्हालना


आसान था लोगों पे कीचड़ उछालना


जब नाश आता कुत्तों पे तो सहर भागते


भौकने वाले कुत्ते नहीं काटते


तुम्हारी फितरत है चाटना थूक के


हम बिहारी थूक कर नहीं चाटते ..................






13 May, 2009

मेरी अभिव्यक्ति के हर एक पहल में व्याप्त वही सर्वशक्तिमान है .......

संघर्ष मेरा है
पर निष्कर्ष में उसका योगदान है
मेरी अभिव्यक्ति के हर एक पहल
में व्याप्त वही सर्वशक्तिमान है
मेरी जिन्दगी मोहताज़ नही
तुम्हारे मापदंड और पैमाने का
रूह आजाद है मेरी
कोशिश न करना मेरी सोयी शक्ति जगाने का
तुम्हारे ललकारने से युद्घ करता नही मैं
हिजडों से मैं नही लड़ता
मरी हुई शेर के पूंछ का बाल काट कर दिखाने से तुम
शुर वीर नही कहलाओगे
जीवन के रणभूमि में पाखण्ड कर कैसा शौर्य पाओगे ..................

मेरा एक दोस्त नपुंसक है

मेरा एक दोस्त नपुंसक है
पर उसे भी जीने का हक़ है
पर मर्यादा से परे लोगों का अपमान
और फिर बन जाना बिल्कुल अनजान
आग लगाना उसके जीन में है
मौजूदगी उसकी हर सीन में है
हम उसे अमर सिंह कहते हैं
क्यूंकि साथ उसके जो भी रहते हैं
उन्हें पहले परजीवी बनातें हैं
और फिर उनके बर्बादी पर भोज खातें हैं
इनके अन्दर का जानवर कही आपको न बनाये शिकार
बच के रहिये नही तो जल्द लूट जाएगा आपका घर बार ...........

मैं जाग गया लम्बी नींद से तुम कब जागोगे

मैं जाग गया लम्बी नींद से तुम कब जागोगे
इस तरह कब तक चलेगा नंगा नाच तुम कब भागोगे
इज्ज़त उतर गई है पर बेशर्मी तुमको विरासत में मिली है
ऐठन मौजूद है शायद रस्सी अभी पुरी नही जली है
किसी को इतना मत ललकारो भस्मासुर की
भगवान् को ख़ुद आना पड़े
गर अंहकार के नाच में ख़ुद को भस्म करना है
तो कोई रणनीति काम नही आयगी
भस्म हो जाओगे गर गलती से भी हाथ सर पर जायेगी
वहां पे कोई मदद को नही आएगा
और ये जो तेरे हिजडो का फौज है वो मात्र ताली ही बजायेगा .....

मन के भीतर चुनाव चलता है ................


मन के भीतर चुनाव चलता है

जब कभी कोई बात खलता है

जब कोई उठती प्रश्न अन्दर में

घंटियाँ बजती मन के मंदर में

कोई सागर की लहरें हो जैसे

उठती गिरती हो समंदर में

और तब कलाबाजी मन में

होती उथल पुथल जीवन में

तब सही चुनाव आवश्यक है

उत्तर हो सही तेरा हक़ है

आपको प्रतिउत्तर देना नही है

प्रतिसाद हृदय से देना होगा

इस चुनाव की आजादी को

मौन अन्तराल में बोना होगा

तभी जवाब सही आएगी

मौन को शब्दों की अभिव्यक्ति मिल पाएगी .............

10 May, 2009

तुम्हारे प्रखर व्यक्तित्व को माँ साष्टांग प्रणाम............

माँ शब्द नही एक एहसास है
चिलचिलाती धुप में शीतलता का आभास है
माँ के क़दमों में दुनिया समायी है
चरण रज माँ की मैंने तिलक बनाई है
लगाया है मैंने उन्नत ललाट पे अपने
आर्शीवाद उसके और मेरे सपने
मिला मुझको सबकुछ माँ तुमको पाकर
जीवन की श्रोत तुम को नमन शीष झुकाकर
स्वीकार करो माँ मेरा मौन अभिनंदन
खुशबु ही देता जलता भी जो चंदन
शब्दों के परे अनुभूति , माँ तेरे अनेको आयाम
तुम्हारे प्रखर व्यक्तित्व को माँ साष्टांग प्रणाम............

माँ तेरे कदमो में है मेरे चारो धाम .................


माँ मेरे जीवन को फिर से संवार दो

डगमगा रही जो नैया उसको आधार दो

मैं क्यूँ जाऊँ किसी मन्दिर के द्वार पर

मुझको वही मेरे बचपन का प्यार दो

लगी चोट मुझको तो आंसू तुम्हारी थी

मेरी हर खुशी बस माँ तुमको तो प्यारी थी

आज माँ जो ये दुनिया का मेला है

बेटा तेरा यहाँ बिल्कुल अकेला है

आना होगा माँ तुमको फिर एक बार

ताकि जो अविरल गंगा प्यार की बहती है तुमसे

मेरे मन के कलुष को मिटा दे

मेरे जीवन में फिर से एक नया बहार लादे

तुम्हारे वजूद को कोटि कोटि प्रणाम

माँ तेरे कदमो में है मेरे चारो धाम .................






आँचल की सानिध्य पर गर्व


माँ प्रेम त्याग ममत्व की प्रतिमूर्ति

आँचल की सानिध्यता पर गर्व

हर दिन ही तो है मात्री पर्व

माँ मेरा नम्र निवेदन है

हमेशा मुझे तुम्हारा प्यार मिलता रहे

और तुम्हारे आर्शीवाद की जरूरत है

तुम हो तो ही ये कायनात ख़ूबसूरत है

मेरे संघर्ष में तुम्हारा ही सहारा है

माँ मुझे तुम्हारा बेशर्त प्यार ही प्यारा है

तुम्हारे संस्कारों का मैं प्रत्यक्ष प्रमाण हूँ

दुनियादारी के झमेलों से जरा अनजान है

मुझे बहरूपियों से बचनेका वरदान दो

उसकी सत्ता के चमत्कारों का पहचान दो

दो मुझे अपना प्यारा स्पर्श और गोद

समाप्त हो ये भाग दौड़ और भौतिक सुख की अंधी खोज

06 May, 2009

आँखों में जीजिविषा ..............

झुरियों के पीछे जो इंसान है


वो वाकई में संघर्षों की दास्ताँ है


आँखों में जीजिविषा


मन में बिस्वास


की आज भी बाकी है वात्सल्य


पुत्र प्यारा है चाहें कितना भी वो आवारा है


पलना दया पे ये नही गंवारा है



विस्वास के घरोंदे में रहना पसंद है



आज भी आजादी में ही आनंद है .............
























03 May, 2009

चलो कुछ कमेन्ट करते हैं
लोगों को नीचा दिखायेंगे
कुछ अपशब्द बोलेंगे
और कटु वचन का करें भरपूर प्रयोग
क्यूंकि कहाँ है कोई नैतिक आयोग
झूठ खून में है और पाखंड पहचान मेरी
मेरे वजूद का आधार है संस्कारों की हेरा फेरी
सुडो बुद्धिजीवी का चादर डाले
नित नए विवादों को जन्म देना में मैं माहिर हूँ
अपने पाखंडी प्रवृति के लिए जगजाहिर हूँ
हॉबी है मेरी दूसरो पर परजीवी बन उसके अस्तित्व को मिटाना
मुझे चाहिए नए होस्ट जिससे निरंतर मिले मुझे खाना
मेरी कारगुजारियों से त्रस्त लोगों ने किट नाशक का जो किया प्रयोग
मेरा अस्तित्व पड़ा खतरे में मुझे ही लगा भयंकर रोग
मेरी इस आदत से मेरे सारे दोस्त छुट गए
मैं अकेले रह गया आंसू बहाते
अब लोग थूकते हैं मुझपर आते जाते

एहसास मुझे है चैतन्य का कण कण में बसा राम है .............


इश्वर ने इंसान बनाया

या इश्वर स्वयं इंसान बना

रोचक प्रश्न है

अव्यक्त को व्यक्त करने का

उसका प्रयास अतुलनीय है

और जिस प्रकार हजारों पुष्प

बाग़ बनाते है

इश्वर ने संसार की रचना की

और सुनिश्चित किया की हर फूल खुले और खिले

हर जो व्यक्त रचना है उसे अभिव्यक्ति का विस्तार मिले

फूलों में कहाँ होती सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स

वो तो इंसान के दिमाग की देन है

इश्वर के बाग़ में हर फूल खिलने को बेचैन है

इस अव्यक्त को व्यक्त करने और अभिव्यक्त करने वाले

चित्रकार को मेरा कोटि कोटि प्रणाम है

एहसास मुझे है चैतन्य का कण कण में बसा राम है .............

02 May, 2009

जिजीविषा जरूरी है .........


इस मौत के बाज़ार में

जिजीविषा जरूरी है

कौन कहता है की

जिन्दगी मजबूरी है

नौकरी जीवन का एक मात्र लक्ष्य

कैसे बन जाती है

और कैसे पूर्ण विराम लगा देते हो

खुशियों पे अपने

सताती रहती है तुम्हे बाटने से ज्यादा

बटोरने के सपने

तुम्हारे हर भाव के पीछे स्वार्थ है

और प्रेम के चाशनी में लपेटे हो पाखंड

दोस्ती के नाम पे ईमान बेचते हो

दिलों के बीच लकीर खीचते हो

आँखे बंद करने से बदलती नहीं सच्चाई

मुबारक हो तुमको तुम्हारी डिप्लोमेसी और तन्हाई



मजदूर हूँ मजबूरनहीं


मैं एक मजदूर हूँ

जीवन के भाग दौड़ में थक कर चूर हूँ

इस मशिनियत से जीवन का एहसास खो गया

चिंता तनाव कुंठा के ये बीज बो गया

मुझे मेरा बचपन लौटा दो

लौटा दो मन का शुकून

और वापस करो मेरे होठों की मुस्कान

नही चाहिए मुझे अपनी कोई पहचान

मैं जान चुका हूँ जीवन का सत्य

बंधन चाहें लोहे की हो या सोने की

आप तो हर हाल में गुलाम हैं

मजदूर हूँ मजबूरनहीं

आजादी ही मेरा पैगाम है

मुझे उड़ना था पंख को खोल

पर तुमने पंख काट दिया

मैं एक हो कर जी रहा था

पर तुमने बाँट दिया

शीक्षा के नाम पर बो दिए अंहकार

और शुरू हुआ शैक्षणिक अत्याचार

दिमाग के कूडेदान से सब खाली करना है

और लगाने है मन के हर एक कोने में

प्यार और विस्वास के दरख्त

आगया अब पंख पसार उड़ने का वक्त ............


मुझे अपने कमजोरियों के परे जाना है


मुझे अपने कमजोरियों के परे जाना है

अपने ही मन के शंकाओं को आजमाना है

देखना है हर एक विसंगति जो मन के कोने में दबी है

परखना है हर वो घटना जिसकी मन में मलिन छवि है

आसान नही होता अपने मन के विरूद्व कोहराम

पर जिस तरह रौशनी और अँधेरा एक साथ नही होते

हर अँधेरा रौशनी में विलीन होता है

ठीक उसी तरह मन की कलुष

की पहचान ही उसका आखरी दिन होता है

उसी प्रयास को अंजाम देना है

मन जो बकवास करता उसे काम देना है

ताकि अंत हो सके बिल्ली चूहे की रेस

मन के किसी कोने में कुछ न रहे शेष

जीवन के अनुभूतियों को मिले नया आयाम

तभी वस्तुतः हो पायेगा ये युद्घ विराम .........