23 February, 2015

अपनों का ही साथ न हो तो मोल क्या है जीवन का

रिश्ते हैं नाजुक धागे से प्रेम का हैं ये बंधन 
शोभता है उन्नत ललाट पर लगा हुआ ही चन्दन 
शिकन ललाट न आने देना, न करना दिल छोटा 
संभव है जो सुबह था भुला, शाम है घर को लौटा 
न्याय नहीं होगा रिश्तों पर, तर्क का बोझ जो डाला  
मन के मनमानी से ज्यादा ह्रदय ने उसे सम्हाला 
फूल करे माली से बगावत होगा क्या उपवन का 


अपनों का ही साथ न हो तो मोल क्या है जीवन का 

21 February, 2015

काबिल हो तो कोई जुगाड़ तो ढूंढ के लाओ ...










साथ चले थे , हम फिर भी रह गए अकेले
तुमने खूब मक्खन लगाया मैंने पापड़ बेले 
हो तुम कहाँ आज और मैं वहीँ चौराहे पर 
गाल हमारे जड़ा समय ने ऐसा थपड़
पढ़े साथ थे आये भी अव्वल थे हमेशा 
नहीं ज्ञात था कठिन बहुत है नौकरी पेशा
ज्ञान तो है पर नहीं पैरवी ठोकर खाओ 
काबिल हो तो कोई जुगाड़ तो ढूंढ के लाओ ...

14 February, 2015

गुण दोष











गुण दोष के आकलन से निकलो बाहर
हो सके तो दो कदम तो मेरे साथ चलो 
माना की कुछ कमी है ,कुछ खामियां है 
संभव हो तो डाल हांथों में हाँथ चलो 
सुख दुःख हैं सिक्के के दो पहलु भाँती 
वक्त जैसा भी हो वो तो गुजर जाता है 
रहे ये याद की ये भी तो सच्चाई है 
समय पे साथ जो बस याद वही आता है 
मुझे तो आसरा है उसका, अपनी जमती है 
जो दूर कहीं बैठा कैलाश पर्वत पर 
आमंत्रित किया है मैंने उसको अपने यहाँ 
चर्चा चाय पे नहीं बेल के शरबत पर ....