19 November, 2009

वो शब्द मेरे थे पर बोलता था कौन


कल मैं अकेले था

तो हंसती थी ये दुनिया

आज वो अकेलापन

buddhism हो गया

जो रौशनी मेरे

मन को छु गई

उसके लिए मैं

सुंदर एक प्रिज्म हो गया

दुनिया जिसे मेरी उपदेश मानती

वो शब्द मेरे थे पर बोलता था कौन

मैं तो उसी आवाज की परछाईं मात्र हूँ

जीवन के पाठशाला का मामूली छात्र हूँ
मैं प्रेम बाँटता बिखेरता आनंद
मैं उसी अमृत धारा का एक अक्षय पात्र हूँ...............


अंधे को मिली आँखों हो तो मांगे और क्या


अंधे को मिली आँखों हो

तो मांगे और क्या

देख रहा जग को जब

जो लगती थी मिथ्या

जो आंसू बह रहे थे

वे खुशी के थे प्रमाण

जो रंग थे जीवन के

था जो अनंत आसमान

पुलकित था रोम रोम

धन्यवाद देता मन

प्रभु देख रहा था मैं पर दृष्टी नहीं थी

विछुब्ध मन में मेरी ये श्रृष्टि नहीं थी

अब दृश्य और द्रष्टा कहाँ हैं ये पृथक

अब तेरी ही सत्ता का एहसास हर झलक ................

04 November, 2009

काश कोई होता जो तिनके का सहारा देता ..........


काश कोई होता जो तिनके का सहारा देता

मेरी मजधार में नैया को किनारा देता

रचयिता तुम तो जानते हो मैं बताऊँ क्या

सूरज की रौशनी दिया दिखाऊँ क्या

बनादो वज्र मुझे रणभूमि हुंकार मेरी

सुने जो सुन सकी नही है, विचार मेरी

मैं योद्धा हूँ रणभूमि में आया हूँ

नाम रणजीत है विजय मेरे स्वाभाव में है

जीत का जश्न मेरे ह्रदय के हर घाव में है ................

कोई आक्रोश है जो मेरे जेहन में जिन्दा है

कोई आक्रोश है जो मेरे जेहन में जिन्दा है
ऐसा लगता है पिंजडे में ज्यूँ परिंदा है
ख्वाब उड़ने के गगन में संजोये थे मैंने
हकीकत मेरे वजूद पर शर्मिंदा है