29 June, 2018

तुलसी


















तुलसी के पास बैठ जाना
जब भी हो उलझन
माँ की तरह हो आपको रस्ता दिखाएगी
थक कर कभी जो चूर हों
सानिध्य तुलसी का
माँ की तरह थप थपा लोरी सुनाएगी
कितने भी कलुषित विचार चलते हो मन में
संपर्क तुलसी का तो वृन्दावन बनाएगी

हार का जश्न भी मनाने का















जीत का सेहरा बाँध कर इतराते क्यों हो
हार भी आता होगा तुमको बधाई देने
फिर हार सबक, अपनी हार से लेगा
आएगा शीघ्र ,आमंत्रण में, नयी लड़ाई  देने
सिलसिला जारी रहे सिखने सिखाने का
जीत की खुशिंया संग, हार का जश्न भी मनाने  का


28 June, 2018

कोई हार कर भी छोड़ जाता गहरा छाप है

वैसे तो जीत हार का क्रम अनूठा है
सच है तो बस अनुभव, जो शेष झूठा है
मैदान-ए-जंग जीत कर, कोई करता विलाप है
कोई हार कर भी छोड़ जाता गहरा छाप  है










27 June, 2018

वर्तमान के देहरी पर देश बाट है जोह रहा

क्यों हर घटना में तुम हरदम रंग मज़हबी भरते हो
जब भी मिलता मौका है तो रटा  रटाया पढ़ते हो
किंकर्तव्यविमूढ़ होकर वो चेहरा स्याह कर लेता है
फिर अपने अंदर ही अंदर घुट घुट जीता मरता है
वर्तमान के देहरी पर देश बाट है जोह रहा
ये बिखंडन की राजनीति से मेरा हरदम विद्रोह रहा




26 June, 2018

पत्रकारिता किया कलंकित बेच के बुद्धि विवेक

नहीं काटता कौआ है 
बोला   झूठ धड़ल्ले से 
जो बात थी बिलकुल टुच्ची सी 
ब्रेकिंग न्यूज़ बनाया हल्ले से 
फिर किया व्यक्त है खेद मुझे 
ये समाचार था फेक 
पत्रकारिता किया कलंकित 
बेच के बुद्धि विवेक 


24 June, 2018

समाचार खो गया है

समाचार खो गया है
अब तो बस ब्रेकिंग न्यूज़ है
जनमानस पूर्णतः कंफ्यूज है

विश्वास अब ओपिनियन है
आर्गेनिक कुछ भी नहीं
न्यूज़ है सिर्फ घंटों की वाद विवाद
सब में है मिला घृणा द्धेष का कृत्रिम  खाद





23 June, 2018

प्रखर राष्ट्रवाद Tribute to Shyama Prashad Mukharjee

मुखर्जी जी के सम्मान के लिए मेरे मुख की अर्जी
प्रखर राष्ट्रवाद की परिकल्पना अधूरी है 
जब धर्म पंथ आरक्षण राजनीति की धुरी है 
क्या फर्क पड़ता है की दल कौन है, कौन दलपति 
योग्यता बने आधार संभव है तब ही सद्गति 
महिला  पुरुष दिव्यांग बचे बूढ़े या हो नौजवान 
समानता ही होगी इस महापुरुष को सच्चा सम्मान 

माँ

जो कुछ भी मै बन पाया माँ 
आशीर्वाद तुम्हारा है 
तेरी शिक्षा संस्कार  का
मुझको एक मात्र सहारा है 
दुनिया के इस मायाजाल में 
माँ मेरी प्रेरणा तू है  
तू ही मेरी पाठशाला 
तू  ही मेरा गुरु है 

22 June, 2018

#उद्देश्य

जीवन बिना उद्देश्य के जंगल में खोना है हर घटना पर शिकायत नफरत के बीज़ बोना है अगर न हो कोई उद्देश्य तो चुनाव कीजिये उछाल पत्थर आसमान में घाव कीजिये उद्देश्य है तो मंज़िल भी नज़र आ ही जायेगी कामयाबी ललाट पर चन्दन लगाएगी।

दुखती रग

मैं लिखता हूँ आपसे संवाद के लिए 
और लिखता हूँ दर्द से निजात के लिए 
कलम उठता हूँ मैं, होशो हवास में 
कागज़ पे भटकता हूँ सुकून के तलाश में 
कभी कहानी, काव्य कभी , एक सूक्ति है
सहारा शब्दों का लेता हूँ , जब कोई रग जो दुखती है 
 

21 June, 2018

योग


योग संधि है , योग मिलाप है
योग माध्यम है अपने ही विस्तार का
योग यात्रा है मस्तिष्क से ह्रदय की तरफ
योग कड़ी है आंतरिक और वाह्य संसार का

योग है तो है अस्तित्व के मायने
जो कराये ये बोध, आखिर मैं हूँ कौन
योग व्यायाम से परे वो आयाम है
जिसकी जननी है शब्दों के पीछे की मौन






20 June, 2018

जीवन की बात

किसान की बात हो गयी
मन की बात हो गयी
अब जीवन की बात हो जाए
apps पेड़ नहीं लगायेंगे
नाहीं नदियों को पावन बनाएंगे
ट्विटर फेसबुक whatsapp सांस नहीं लेते
फेफड़े में जलन हमारा और आपका है
समय उत्सव का नहीं विलाप का है
Sustainability is the key







19 June, 2018

देश को ऐसा जीवंत सँविधान चाहिए

रोटी कपड़ा और मकान से परे 
स्वास्थ शिक्षा अवसर भी समान चाहिए 
आरक्षण अगर देना हो आधार आर्थिक 
जाति विशेष के लिए न विधान  चाहिए 
सिर्फ़ भाषणों में न हो सबका साथ और विकास 
ज़मीन पर परिवर्तन का प्रमाण चाहिए 
जो सबको साथ लेके अखंड राष्ट्र रच सके 
देश को ऐसा जीवंत सँविधान चाहिए 


नेता बक बक कर रहे, जनता तो मौन है

क्या शिक्षा लें आपसे
परे समझ के मेरे
लीडर नेता क्या कहें
हर ओर हैं डाले डेरे
धरना प्रदर्शन जोड़ तोड़
जात  धरम समुदाय
छिड़ी बहस इतनी सी बस
मूरख कैसे बनाय
दल दलदल की राजनीति से
जनता है बेचैन
बाद विवाद के जाल में
बीते है दिन  रैन
बात हमेशा एक की काबिल कौन है
नेता बक बक कर रहे, जनता तो मौन है

17 June, 2018

Happy fathers Day













आदर्श मेरे हो, उत्कर्ष मेरे हो 
विषाद में थे संग, हर्ष मेरे हो 
मेरे लिए खड़े हिमालय सा हो पर्वत 
व्यक्तित्व को तुम्हारे मेरा मौन दंडवत  
 

 

प्रकृति से कट्टी















पानी की कमी है 
हवा भी है विषाक्त 
और जंगल ख़त्म हो रहे हैं  
ऐसे में योग से भी रोग हो जाएगा 
पता नहीं प्रकृति से कट्टी करली 
तो फिर कौन हमारे अस्तित्व को बचाएगा 


 

 




 
 






15 June, 2018

बरगद के पेड़ से ज्ञान जीवन का लीजिये





जब भी अकेलापन आपको सताएगा 
परिवार ही  उस समय पे काम आएगा 
रह जायेंगी उपलब्धियाँ दीवार पर टंगी 
जब मायाजाल आपको ठेंगा दिखायेगा 

बरगद के पेड़ से 
ज्ञान जीवन का लीजिये 
अगर चाहिए चतुर्मुखी विकास आपको
फिर जड़ को सहारा , तने से दीजिये  ..... 





14 June, 2018

पूर्णविराम अर्धविराम नया आयाम





















जीवन के यात्रा में अनेकों पड़ाव हैं
कभी रास्ते में धुप, कभी शीतल सी छाँव है
हर एक जो अंतराल है पूर्णविराम (fullstop) न बने
यही वो क्षण है जिसमे नयी योजना गढ़ें
 जो अवरोध रुकावट है, उसे कौमा (comma) बनाइये
और उसके समक्ष प्रबल  एक विचार लाइए 
विचार ये की ईश्वर और मेरी जुगलबंदी है
जीत हार दोनों से परस्पर की संधि है
और ये समझ की सीखने को क्या मिला हर बार
तभी सफलता का हर द्धार है हरिद्धार। .....










13 June, 2018

कोई मेडल न कोई पुरस्कार चाहिए



















सहानुभूति नहीं, समानुभूति चाहिए 
ये यज्ञ है  विशेष ,स्वयं का परिष्कार 
अहँकार की इसमें, पूर्णाहुति चाहिए 
न जीत की ललक , न ही हार चाहिए
कोई  मेडल  न कोई पुरस्कार चाहिए  
क्रिटिसाइज़ की जगह जो कर सके  क्रिटिगाइड  
मित्र से  बस वैसा ही  व्यवहार  चाहिए
 

12 June, 2018

खुद को जितने के लिए ज्ञान चाहिए











हर प्रश्न का उत्तर है, सुझाव है हल है 
बस एक समझ की वर्तमान का ही वो पल है 

कुछ वक्त अपने साथ भी युहीं गुजारो 
हो सके मन के झील में कंकड़ ही दे मारो 
फिर जो विचारों का तरंग उठता हो ह्रदय में 
द्रष्टा की भाँति दूर से उनको तुम निहारो 

शिक्षा के सहारे दुनिया तो जीतोगे 
पर खुद को जितने के लिए ज्ञान चाहिए 
अंदर की यात्रा के हैं पृथक आयाम 
बाहर की दुनिया को कागज़ी प्रमाण चाहिए।









  



11 June, 2018

अपनी समस्या को आउटसोर्स न करना



















तुम कोसते रहे की अँधकार है वहाँ
भय है, है दुःख,जिंदगी लाचार है वहाँ 
कोशिश नहीं कोई की बदलाव कैसे हो 
चिलचिलाती धुप में फिर छाँव कैसे हो 

एक विचार काफी है बदलाव के लिए 
बीज़ लगाते रहो नित छाँव के लिए 
अन्धकार घोर हो निराश न होना 
दीपक जलाते रहना  संसार के लिए 

हर एक जो प्रश्न  है 
उसका हल भी है मौजूद 
बस  इतनी सी है शर्त 
 दीपक बनो तुम खुद 
कोई कृष्ण सारथी बन ,रथ ले के आएंगे 
शंख पांचजन्य वो  पुनः बजायेंगे
अपनी समस्या को आउटसोर्स न करना 
अर्जुन की भाँती रणभूमि में योद्धा बन लड़ना  















09 June, 2018

बात गहरी है मगर हलके में कही है




















मुझे मंज़िल से प्यारा राह है
जिसका मैं राही हूँ
उन्मुक्त भाव जो बिखेरे कोरे कागज़  पर
मैं विधाता की वही स्वर्णिम सी स्याही हूँ
मौन हूँ मैं , शोर हूँ ह्रदय का क्रंदन हूँ
कभी जलता हुआ मशाल , कभी शीतल सा चन्दन हूँ
मैं वही हूँ ,जो हो तुम और वो भी वही है
बात गहरी है मगर हलके में कही है



06 June, 2018

बस याद रहे हाँथ तेरे कौन सा थैला है




















आँखों के  समँदर में , आंसू की ज्वारभाटा
बोया बबूल था, जो उपजा है बन के काँटा
ये वक़्त का तकाज़ा ,रेगिस्तान का मंज़र है
गर्मी के तपिश से झुलसता हुआ सहर है
पेड़ों  को काटा हमने , नदियों में जहर घोला
बिमारी नयी बनाई , अस्पताल हमने खोला
जंगल ज़मीन जल और वायु भी विषैला है
बस याद रहे हाँथ तेरे कौन सा थैला है





05 June, 2018

संचित ये पाप को , गंगा न धो पायेगा














अगर पेड़ नहीं होंगे 
तो छाँव कहाँ होगा 
शहर ही शहर होंगे 
तो गाँव कहाँ होगा 
तब विलाप करना भी काम न आएगा 
संचित ये पाप को , गंगा न धो पायेगा 
चेतावनी विधाता का , समझना जरूरी है 
पर्यावरण संरक्षण ही अस्तित्व की धूरि है