31 May, 2017

आना पड़ेगा माँ तुम्हे मेरा हाँथ थामने

सफलता जब मिली तो दर्पण दिखा गयी 
यौवन भी दिखाया और बचपन दिखा गयी 
जीवन का वृत्तचित्र था आँखों के सामने
आना पड़ेगा माँ तुम्हे मेरा हाँथ थामने 

पाने की चाह में खोते चले गए 
दूरी की बीज़  मन  में बोते चले गए 
दौड़ते रहे अंतहीन रेस है  
गांव क़स्बा शहर देश और प्रदेश है
मिटटी के  घर से संगेमरमर के मकान तक 
बस दौड़ते रहे अंतिम साँस  प्राण तक










17 April, 2017

वही सही सुचना है जो परख तीन पर चल जाए
















कोई कुछ भी कहे,करे काना फुसी , या फिर चुगली,
या आरोप लगाए, निंदा करे ,उठाये  जब उंगली
याद रहे विश्वास तुम्हारा  युहीं कोई न छल जाए
वही सही सुचना है जो परख तीन पर चल जाए

पहली परख सच है या मिथ्या, होना बहुत जरूरी है
दूसरी क्या कोई अच्छाई इस सुचना की धुरी है
तीसरी किसी काम की है ,क्या इसमें कोई हित है
नहीं मिले उत्तर तो  समझें  ,इसमें स्वार्थ निहित है








01 April, 2017

तांडव
























विकास कहूँ या कहूँ विनाश 
मन में दुविधा भारी है 
मानो या न मानो तांडव
प्रकृति का तो जारी है 
जल विषाक्त 
जंगल समाप्त 
खेत हो गए खारा 
और मवेशी कर रहे 
जहाँ कचड़े  पर हों गुजारा 
साँसों में जहाँ जहर घुला 
पानी की कमी  खलती हो
थोड़ा तो हम करें विचार 
शायद अपनी गलती हो 

(फोटो : इस्कॉन दिल्ली )


 

 



 

31 March, 2017

बुद्धि के सामने नतमस्तक विवेक था















रोटी के बहाने  घर बार से अलग
माता  पिता के स्नेह  और प्यार से अलग
गाँव का कुआँ छोड़,  मन की मिटाने प्यास
कोंक्रिट के जंगल में भविष्य की तलाश

जीवन  का लक्ष्य क्या है
दो वक़्त की रोटी
या कुछ और मायने हैं
अस्तित्व के अपने
 मैंने खुले आँखों से
देखे कई  सपने
उन सपनो में निहित भाव , मात्र  एक था
बुद्धि के सामने नतमस्तक  विवेक  था

(फोटो : शान्तिकुंज  हरिद्धार यात्रा )



 







30 March, 2017

जड़















जिस पेड़ के हिस्से हैं उसके जड़ को देखिये
फल फूल तने  लता और मंज़र को देखिये
ये देखिये असंख्य जीव जिसपे हैं निर्भर 
रहे सदा जिवंत हर उस अवसर को देखिये 



29 March, 2017

दुर्योधन















बंधी आँख पर पट्टी हो तो
सच और झूठ  सब एक समान
जब कोई आये समझाने
एक वाक्य की मत दो ज्ञान
यही हुआ दुर्योधन के संग
कृष्ण गए जब समझाने
मन में एक ही बात रही
मुझे युद्ध चाहिए किसी बहाने
आप जिधर भी आँखें फेरें
दीखते असंख्य दुर्योधन हैं
अपनी जड़ों को काटने की
ये कैसी युद्ध उद्बोधन है







28 March, 2017

कर्ण अर्जुन

तुम्हारे शब्द मेरे  घाव को मरहम जो दे देते 
तो ये जख्म आज यूँ तो नासूर न  होता 
इतिहास के पन्नो में फिर कोई अर्जुन 
अपने सहोदर कर्ण से तो दूर न होता