25 June, 2009

छुना है आसमान ................



घुटनों के बल चलना नहीं


छुना है आसमान


जो जीवन के दाव पेंच हैं


उनसे करो पहचान


जरूरी नहीं तुम्हारा हर निर्णय सही हो


पर तुम बीज बोते रहना बिश्वास का


क्यूंकि अनुभव तुम्हारा लेजायेगा आगे तुम्हे


जहाँ तुम्हारा स्वछंद विचार


तुम्हे नई दिशा का ज्ञान कराएगा


तुम्हारा निर्णय छमता ही तुम्हे पंख देगा लम्बी उड़ान का


वही तुम्हे जंजीरों से स्वतंत्र कराएगा .............


24 June, 2009

पन्गुइन के सहर में मैं एक मोर हूँ ............


पन्गुइन के सहर में मैं एक मोर हूँ

घनघोर अंधेरे को जो तोड़ दे वो प्रभात वो भोर हूँ

मेरी हर एक पहल अभिव्यक्ति है उस सर्वशक्तिमान की

मुझे सच पर बिश्वास है , जीता जीवन मैं अनजान की

बन नहीं मैं सकता मैं पन्गुइन खुश हूँ मोर होके

इनके अंधे दौड़ से बहार , जो रोके न रुके

मेरा तो उद्देश्य है जीवन को खुल के जीना

श्याम श्वेत जीना गंवारा नहीं

मैं तो आनंद का पर्याय हूँ ,जीत हार प्यारा नहीं

उसी आनंद में मैं निरंतर आत्मविभोर हूँ

पन्गुइन के सहर में मैं अकेला जीवित मोर हूँ .............

22 June, 2009

डर के बाद होता जीत है


मेरे अंदर का डर

मुझे मजबूत कर जाता है

जब मैं विचलित नहीं होता
डर विलीन हो जाता है

लेकिन उस अन्तराल में

मन के साथ मेरा युद्घ चलता है

हर निराशा के विचार पर

आशावादी शब्दों का प्रहार चलता है

डर के बाद होता जीत है

और हारना अपनी कमजोरियों से

कहाँ रणभूमि की रीत है

मन के हारे हार है

मन के हावी होने का बस येही आधार है

जीतना अगर है तो मन का विनाश जरूरी है

उड़ना हो बंधन तोड़ तो खुला आकाश जरूरी है

तो मन के कलाबाजी पर नियंत्रण

मन का पुर्णतः आत्म समर्पण

जीत के संभावनाओं को बुलंद करता है

अब डर के बाद जीत से कौन डरता है

हर कदम जब अभिव्यक्ति हो जायेगी

हर युद्घ जब कुछ नए परिवर्तन लाएगी

तब जीत के नए आयाम सामने आयेंगे

डर विलीन होगा और हम प्रेम से जीत को गले लगायेंगे ...............


21 June, 2009

पापा आयी लव यू ............


papa at times u have been tender

at times u were rude

but all your attempts was

to make me cool dude.

i wonder that will i be able

to give what i have got

papa i wanna tell u

your presence means a lot

i failed and then i scaled

i cried in pain and cherished every win

u were there to hold my hands and enlighten within

with passing day and fight for bread

i left u but i am afraid

still i look to see around

the strong hand that can bound

and free me for all the fear

papa u r my best friend u r dear

i salute u because u just stand out of crowd

to be in ur loving presence i always feel happy and proud......

20 June, 2009

अपनी ही दुनिया में मैं आज अजनबी .........



शब्दों के जंगल में


परिभाषाओं की बाढ़ है


भावनाओं का मोल क्या


यहाँ अनुभव लाचार है


होड़ है लगी आगे मैं निकल जाऊँ


कोई ऐसी नयी मैं चाल चल जाऊँ


लोगों को हराकर करूँ मैं जीत का एलान


अपनी बना सकूँ भीड़ से अलग पहचान


इसी क्रम में भूला मैं इंसान था कभी


अपनी ही दुनिया में मैं आज अजनबी ........



मुझे बतखों के स्कूल में नही जाना है



आकाश के विस्तार को पाना है


मुझे बतखों के स्कूल में नही जाना है


मुझे संग चाहिए उड़ने वाले पंछी का


जो उड़ना सिखादे


मेरे अंदर का आन्जनेय जगादे


मुझे जामवंत जैसे गुरु की तलाश है


जो बस मेरे संभावनाओं पर सोंचने पर करे मजबूर


देदे वो विश्वास की उड़ सकूँ पंख पसार सुदूर


और भर लूँ आसमान को अपने बाँहों में


मुझे विचरण करना है आकाश के अनजान राहों में .......................

15 June, 2009

मैं जीवन की पहेली को सुलझाने की चेष्टा नहीं रखता .............


मेरा क्या है खोने को
कौन है अपना होने को
था अकेला पहले भी
और आज भी अकेला हूँ
मैं इस राह का पथिक पहला हूँ
पदचिन्ह कहाँ जिसे मैं करूँ अनुसरण
चलता हूँ जैसा कहता मेरा अन्तः करण
मैं जीवन की पहेली को सुलझाने की चेष्टा नहीं रखता
मैं तो खुश हूँ अपनी यात्रा के अनुभवों से
और बताना चाहता बस इतना
की मैं मुर्ख और दुनिया सयाना है
मैं भेड़ की भीड़ से अलग हूँ
मुझे अपना रास्ता स्वयं बनाना है ...............

10 June, 2009

दधीची स्वीकार करो मेरा मौन अभिनन्दन


मेरी एक अभिलाषा है

और छोटी सी है आशा एक

की वज्र बने मेरे मन को मार कर

देना चाहता हूँ मैं दान में अपना विचलित मन

जैसे दधीची ने दी थी अपनी हड्डियाँ

ताकि बन सके वज्र और विनाश की बेदी पर

श्रीजन के बीज प्रतिस्फूटित हों

और कालांतर तक मस्तिष्क पर छोड़ दूँ छाप

लगादुं समय के उन्नत ललाट पर शीतल चंदन

दधीची स्वीकार करो मेरा मौन अभिनन्दन ........................

शिव जी जस्ट वान्ना से हेल्लो


शिव है या फिर है शव

मौन या सुखद कलरव

उस चैतन्य का मैं पुजारी हूँ

मिला जो जीवन आभारी हूँ

की आभास उसका मुझे कण कण में है

उसकी छाप मेरे हर वचन में है

मैं भी पीना चाहता हूँ विष सागर मंथन का ताकि

अमृत के निकलने की सम्भावना बनी रहे

और सर के अंहकार पर चंद्रमा की शीतलता

चाहता हूँ मैं भी तुम्हारा सानिध्य

की मांगू क्या अब सिर्फ़ तुम चाहिए

और उससे कम कुछ नही

क्यूँकी छोड़ दी है मैंने बीजनेस भक्ति

टूट गया है मोह और ज्ञात हो गया है साध्य ................


01 June, 2009

जब रास्ते मंजिल हों तो राही को क्या डरना


जब रास्ते मंजिल हों तो राही को क्या डरना

जिन्दगी पाठशाला किताबों में क्या पढ़ना

क्या शोध , क्या पढ़ाई रोटी के लिए करना

जो जन्मा इस धरा पर एक दिन है उसे मरना

फिर काहे का ये हल्ला और क्यूँ है ये हंगामा

जिन्दगी के रंगमंच पर चल रहा जो ड्रामा

तुम पात्र में अपने इस तरह खो गए हो

अपने ही अंतर्मन से अलग हो गए हो

झख्झोर के तुमको बस इतना है बताना

इस मंच के परे भी कोई और है ठिकाना

जहाँ चित्र भी तुम्ही हो और चित्रकार भी हो तुम ही

जहाँ प्रेमी भी तुम्ही हो और प्यार भी हो तुम ही

तुम्हारे इस यात्रा का हमसफ़र बस वही है

उसके हांथों में हाँथ तो फिर सब सही है .................