28 January, 2009

मौन की भी आवाज होती है ......................


मौन की भी आवाज होती है

जब तुम्हारी ख़ुद से बात होती है

जानते हो ये आवाज़ तुम्ही सुनते हो

पर बाहरी शोर इतना जयादा है

उसी में अपने सपने बुनते हो

तुम खो जाते हो इसकदर से तलाश में अपनी

की भूल जाते हो खोज रहे थे क्या तुम

तरस रहा है वो की बात तुमसे हो जाए

चलो एकबार मुलाक़ात तुमसे हो जाए

बतादे वो भी की दुःख की दावा उसी के पास

तुम भटक लो , एक दिन होगा तुमको ये एहसास

मैं हूँ वही जो सचमुच तेरा सहारा हूँ

तेरी भटकी हुई कस्ती का मैं किनारा हूँ


27 January, 2009

एक बीज लगाना है आँगन में दिल के तेरे .................................


एक बीज लगाना है आँगन में दिल के तेरे

बिस्वास मुझको है ये तुम ना नही कहोगी

जानती हो रस्ते कठिन हैं बड़े मेरे

मंजिल का नहीं मुझको आभास भी जरा सा

जो प्यार तेरा मुझको मिल जाए इस सफर में

तो कुछ भी नहीं ऐसा जो पा नहीं सकूंगा

तुम सोंचती हो क्या, मुझे एहसास नही इसका

पर लगता है क्यूँ ऐसा की प्यार तुमको भी है

तुम आए हो तो मुझको लगने लगा है ऐसा

सपने जो हैं अधूरे वो पुरे हो सकेंगे

मिलके जो चाहें हम तो छुलेंगे आसमा को

स्वीकार करो मेरा तुम प्यार मुस्कुराकर

जो भीड़ में हमेश खोई सी तुम रहती हो

इजहार करो इसका अब पास मेरे आकर .






26 January, 2009

दोस्ती का अंदाज़ ही निराला है ...............

मेरे दोस्तों में तुम सबसे अलग हो
क्योंकि तुम्हारे दोस्ती का अंदाज़
ही निराला है
दिखाते हो तुम की तुम्हारे वजह से
लोगों का अस्तित्व है
सीमायें तय करते हो तुम
देखना कहीं तुम्हारी धूर्तता
तुम्हे न करदे ghutna टेकने पे मजबूर
भूलना नही की तुम भगवन नही
कब तक करते रहोगे लोगो का अपमान
जानता हु मैं तुम हिन् भावना के शिकार हो
एक दिन हिसाब सारे देने होंगे तुम्हे
तब शायद मेरे कंधे की जरूरत हो
ध्यान से देखना मुझे वहां पाओगे
क्या हुआ जो हर वक्त किया जलील मुझे
और बनाया मोहरा
सवाल इतने हैं की जवाब न दे पाओगे.



25 January, 2009

प्यार एहसास है जो दिल में उतर जाता है .........................


प्यार एहसास है जो दिल में उतर जाता है

ये वो पहलु है जो सीखने से नही आता है

मैंने भी प्यार किया टूटने लगी बंधन

यूँ था लगने लगा मिल गई नई जीवन

साथ जब थी वो तो समय का आभास न था

कुछ और चाहिए ऐसा भी कोई एहसास न था

जो थोड़े वक्त हमने साथ बिताये

और जो सपने हवाओं में बनाये हमने

हमें तो याद है हर एक ख्वाइश तेरी

अब ख्वाबों को एक छोटी गुजारिश मेरी

तुम्हारे प्यार का एहसास अभी जिन्दा है

उड़ने को बेताब ये परिंदा है

देखना आकाश में पदचिन्ह कहाँ पाओगी

मैं जो उड़ गया तो साथ कैसे आओगी

है प्यार कितना मुझे तुमसे कोई हिसाब नही

तुम्हारा जिद का मेरे पास कोई जवाब नही.





24 January, 2009

तिलक मैं विश्व के उन्नत ललाट पर लगा जाऊँगा.....................


मंजिल को पाना ही तो सब कुछ नहीं

यात्रा भी जरूरी है

रास्ते जो चुने हमने क्या इसमे कोई मजबूरी है

मैं नहीं मानता लक्ष्य को मुख्य

और साधन को गौण

मेरे लिए रास्ता भी उतना ही महत्व पूर्ण है

और यात्रा मेरा निजी स्वाभाव

क्युकी रुकी हुई पानी भी गंध करती है

मुझे तो प्यारी है नदी का निरंतर बहाव

जो अपने रास्ते स्वयं बनाती है

चट्टानों के ललाट पर अपने

यात्रा के अनुभवों का तिलक लगाती है

वही तिलक मैं विश्व के उन्नत ललाट पर लगा जाऊँगा

सागर के बाँहों में सामने से पहले अपनी क्षाप छोड़ जाऊँगा.

डोंट वरी आ गया फिर २६ जनवरी..................


डोंट वरी
आ गया फिर २६ जनवरी

राष्ट्र के नाम समर्पित एक और दिन नही महज

ये हमारे गरिमा का पर्व है

क्या आपको इस बात का गर्व है

माना हैं विसंगतिया बहुत

और समस्याओं का भी पुलिंदा है

पर क्या आपके हृदय में वो हिन्दुस्तानी जिंदा है

टटोलिये अपने अंतरात्मा को

बहुत बकवास करता है साला

उसको चुप कराइए और दीजिये सख्त निर्देश

की हर हाल में पहले देश आता है

ये सवाल है ही नहीं की कोई इस पर्व को क्यूँ मनाता है.

23 January, 2009

दुःख का कारण विज्ञापन प्रसारण............


मैंने पूछा की भाई दुःख का कारन क्या है

हम क्यूँ हमेशा रहते हैं दुखी और उदास

गुरूजी मुस्कुराये

और उनकी ये बात मुझको भा गई

मेरे चेहरे पे भी मुस्कराहट आगई

बोले

कारण दुःख का कुछ नही विज्ञापन है

टीवी आपको बतलाती है

की आप हीन है

या हसीन हैं

गर फलां प्रोडक्ट आपके पास है

तभी आप जीने के काबिल हैं

और समाज में आपकी पहचान है

वरना आप क्या हैं

और आपकी औकात क्या है

जीवन में गर खुशी चाहते हो

तो ये प्रोडक्ट जरूरी है

पर तुम तो आम आदमी हो

तुम्हारी कितनी मजबूरी है

तो जान लो गर विज्ञापन के मायाजाल में फन्सोंगे

तो तुम ख़ुद बताओ बेटा की तुम कैसे हंसोगे.

हर इंसान की जिन्दगी एक बेस्ट सेलर कहानी होती है .......................






हर इंसान की जिन्दगी एक बेस्ट सेलर कहानी होती है



जिसका नायक वो स्वयं होता है



और कहानी होती है संघर्षों की गाथा



मेरी भी कहानी में ट्विस्ट है



और वो जो मुख्य आर्टिस्ट है



वो जनाब मैं नहीं



मेरा चंचल मन है



हमेशा कलाबाजियां खाता है



हर घटना में विचलित हो जाता है



इसके कारण मेरे अन्दर का कलाकार सोया हुआ है



अपने ही कहानी में साइड आर्टिस्ट की तरह खोया हुआ है



अब वो वक्त आगया है की परदे के चकाचौन्द में वो साइड आर्टिस्ट आए



अपने कहानी का स्वयं बने मुख्य कलाकार



बंद हो मन की उदंडता कहानी को मिले मजबूत आधार.





22 January, 2009

कभी दिल में जो लहर उठती है ...............


कभी दिल में जो लहर उठती है


भावनाओं के बाँध तोड़ते हुए


आँखों से आंसू बन के फूटती है


आज करता है मन की रो लू मैं


जो हैं राज गहरे खोलू मैं


मेरा जीवन ही बड़ा उलझा है


और मेरे रास्ते आसन नहीं


पर जो चाहता था मैं बनना


मेरे दिल तू उससे नादान नहीं


फिर क्यूँ होता बार बार है ये


मैं चौराहे पर ख़ुद को पाता हूँ


ये जो करते हो बार बार तुम


तेरे करतूतों से मैं तो सहम जाता हूँ


मुझे आजाद कर दे मन मेरे


ताकि मैं खुल के मुस्कुरा तो सकूँ


मेरे अस्तित्व का जो हासिल है


उस लक्ष्य को इस जनम में पा तो सकूँ








21 January, 2009

तुम मुझे इस कदर याद आने लगी हो ...................


तुम मुझे इस कदर याद आने लगी हो

ख्वाबों में यूँ आके छाने लगी हो

की तुम ही तुम मेरे ख्यालों में हो

जवाबों में हो तुम सवालों में हो

जहाँ भी मैं देखूं तुम्हारा ही चेहरा

लगाऊं में कैसे निगाहों पे पहरा

जो कहती हो तुम की यही प्यार है

मुझे भी कहाँ इससे इनकार है

चलो फिर चलें हम क़दम को मिलाकर

खुश हूँ में यूँ तेरा प्यार पाकर

तुम आई तो ऐसा लगा मेरे मन को

पा लिया जैसे मैंने हर खुशी एक क्षण को

मुझे क्या पता था जो सपना था मेरा

उसको मिलेगा तुम्हरा ही chehra

तुम्हारे क़दम से खुशी आ गई है

यूँ लगता है जैसे जिन्दगी आगई है .


चलो जरा मुस्कुराते हैं .........................


चलो जरा मुस्कुराते हैं
जो जिंदिगी के गम है उनको भूलाते हैं चलो.....
जानते हो तुम दुखी क्यूँ , क्यूँ उदास हो
क्या है वो जिसके वजह से बदहवास हो
जो भी हो कारन मैं तो बस ये मानता हूँ
जिंदिगी का नियम यह अच्छी तरह से जनता हूँ
की परीक्षा पहले आती बाद में मिलती सबक
मुस्कुराना सीख लो तुम है तुम्हारा ही ये हक़
मुस्कुराके जिन्दगी के पाठ लेते बढ़ चलो
मुश्किलों के गोद में भी खूब तुम फूलो फलो.

20 January, 2009

हर आदमी के अंदर दो कुत्ता होता है ...............



हर आदमी के अंदर दो कुत्ता होता है


एक अच्छे तो दूसरा बुरे विचार बोता है


हाँथ अपने है किसे खाना खिलाएं हम


कौन कुत्ता जयादा वफादार होता है


अक्सर होता ऐसा , हम ये भूल जाते हैं


दुसरे कुत्ते को ही बोटी खिलते हैं


पहला कुत्ता होता कुपोषण का शिकार है


दुसरे के सामने दीखता बीमार है


विचार अपना हमें स्वयं बदलना है


भौकने वालों से अब नही मचलना है


देखना है मिले रोटी उसी कुत्ते को


जिसके बताये रास्ते पे आगे चलना है.


आज मन के परे जाना है


आज मन के परे जाना है

और ये मन को भी बताना है

की ये तेरा रोज के नाटक से मैं परेशान सा हूँ

अपने ही सहर में मैं अनजान सा हूँ

पता नही तू कभी खुश भी क्या हो पायेगा

गर तू चुप हो तो मेरा भला हो जाएगा

पर मैं जानता हूँ तू बना नादान सा है

मेरे जो पुरे न हुए वो अरमान सा है

मेरी खुशी के खातिर तुम्हे चुप होना है

मैंने पाया है क्या तुझसे जो अब वो खोना है

तेरा चुप होना ही सच में मेरी आजादी है

ये वो बात है मैंने तुमको भी बतलादी है

तो मेरे मन तेरे मरने का इंतज़ार मुझे

मौत के बाद वचन है न आंसू आयेंगे

येही बलिदान मेरे जीवन में खुशी लायेंगे .





19 January, 2009

चलो प्यार हम करते हैं ......


चलो प्यार हम करते हैं

दुनिया से किया निरंतर

अपने से एक बार करतें हैं चलो.....

हर चीज जो प्यारा है

आंखों का है वो बंधन

अन्दर जो छुपा बैठा

उस से इकरार करते हैं चलो...

जो हो तुम ,वो भी है ही

जो वो नही तो तुम क्या

जो साथ है हमेशा

उस से इजहार करते हैं चलो...

जब तक थे तुम अकेले

तुम थे नही वही था

उस अजनबी को जाके

स्वीकार हम करतें हैं चलो...

चश्मा जो चिल्लाये की आँखों को मैं देखूंगा

ऐसा कहाँ कोई चश्मा व्यव्हार हम करते हैं चलो....




डीग्री का पतंग हम उडाते हैं..............


आदर्श बेंच कर चलो मूंगफली खातें हैं
अपने डीग्री का पतंग हम उडाते हैं
इस कदर भीड़ में खो जायेंगे
रोज कतारों में ख़ुद को पायेंगे
नौकरी के इस जद्दोजहद में
डर है ख़ुद से जुदा हो जायेंगे
क्या पता मिल गए खुदा होते
जो ख़ुद से न हम जुदा होते
पर ये हालत आ गई है अभी
खुदा की बात आ गई है अभी
चाहता हूँ लौट जाऊँ गांव में
प्यार मिल जाए माँ के आँचल के छाओं में

ब्रेकिंग न्यूज़ ....................


मेरे संघर्ष का साक्षि मेरे मन का अंतर्द्वंद है

हमेशा न्यूज़ चैनल के तरह एक पट्टी चलती है

जिसमे अधिकतर ब्रेकिंग न्यूज़ निकलती है

जिसमे सच्चाई कम और सनसनी ज्यादा है

मन २४ गुने ७ का येही वादा है

आपको उलझाये रखेंगे सदैव हम

kyunki इसी चैनल में है वो खास दम

तो रहिये न बेखबर

दीजिये हमें वो अवसर

की आपका हो सीधा प्रसारण

हम बने सदैव आपके दुःख का कारण .

कविता एक आविष्कार है ...................




कविता एक आविष्कार है
जंग लगे मन पर मजबूत प्रहार है
काव्य हृदय से नीकलती है
मन के राह चलती है और
शब्दों के समंदर से
भावों को समेटें मौज बन निकलती है
ये मौज जो चट्टानों से
आंधी और तुफानो से रोज संघर्ष करती है
जीत की डायरी में वही कविता बन उतरती है.

18 January, 2009

हार से डरना क्या जब नाम ही जीत है.................









हार से डरना क्या जब नाम ही जीत है




मेरे स्वाभाव से सारा रणभूमि परिचित है




कर्ण है आदर्श मेरे मैभी हूँ उनसा सबल




दानवीर मैं ही हूँ देदे जो फिर कुंडल कवच




छल से गर लड़ना है तुमको हार भी मेरी जीत है




तुम कहो जायज़ सभी ये रन भूमि की रीत है




मेरा क्या खोने को है जो खो दूँ मैं अपना चरित्र




मेरे ह्रदय का रोम रोम है आज भी उतना पवित्र










क्या स्वार्थी होना गुनाह है


क्या स्वार्थी होना गुनाह है

मेरे विचार से बिल्कुल नहीं

गर तुम सच में इस शब्द के भाव में जाओगे

तो अपने ख़ुद के स्वाभाव में भी इसे पाओगे

स्व के अर्थ को समझना ही स्वार्थ है

सच में येही इसका असली भावार्थ है .




17 January, 2009

मेरे रामायण में मंथरा नही आती है....




कैकयी को भरत के राज्याभिषेक


के साथ राम का वनवास चाहिए


मुद्दा यही है आज भी की राम का वनवास है


भरत उदास है


शायद कैकयी की आँखे भी नम है


दसरथ असहाय हैं


पर क्या मंथरा कोभी कोई गम है


शायद नही


आग लगादी ऐसे की लंका तो बाद में


अयोध्या पहले जल गई


मुझे आज यही बात खल गयी


मंथरा मेरा तुमसे है एक अनुरोध


बख्श दो मेरा ये संसार


मत करो कुटिल दिमाग का दुरूपयोग


मैं जानता हूँ इतिहास अपने आप को दुहराती है


पर याद रखना मेरे रामायण में मंथरा नही आती है....




दोस्ती हमने भी की है और निभाए यारी भी..................................




दोस्ती हमने भी की है और निभाए यारी भी


इसकदर मैं था समर्पित दोस्ती थी प्यारी भी


पर एक अंहकार की जो हवा चल गयी


दोस्तों की दोस्ती यार मुझको खल गई


क्या पता था उनके मुख से रोज गाली खाऊँगा


भीड़ में भी होकर एकदम अकेला हो जाऊँगा


मैंने न प्रतिकार की न किया कोई विरोध


कैसे है ये लड़ाई कैसा है ये प्रतिशोध


मूंछ न दाढी है जिनकी राजनीती वो कर रहे


मिलता क्या इनसे उन्हें है जाने क्यूँ वो लड़ रहे


आग ऐसी है लगायी भस्म ख़ुद भी होजाएंगे


डूब के जो मरना हो चुलू भर पानी न पाएंगे


ऐसी आत्मा को प्रभु तुम शान्ति प्रदान कर


इनके हाथों से किसीको और न बलिदान कर.






16 January, 2009

दोस्त कौन , कौन दुश्मन कौन सच्चा मीत है


दोस्त कौन , कौन दुश्मन कौन सच्चा मीत है

किसके संगत में जहर है और कौन अमृत है

पाखंडी दोस्त से होता है दुश्मन तो भला

ऐसे दोस्त कैसे हो जो दबोच दे तेरा गला

बच के रहना गिरगिटों से कब बदलदे अपना रंग

कैसे रख सकते इन पागल कुत्तों को तुम अपने संग

देखना एक दिन कहीं न तुम पे ही झपट पड़े

और इनके रूप में छुपे हैं अनेक कपट बड़े

ये हैं वो जो लाश पर तेरी बनायेंगे महल

आगया वो वक्त है कर दो कोई नयी पहल

फिर न कहना उसके मेरे पर बहुत एहसान हैं

दुश्मनों के लिए मेरे दिल में बहुत सम्मान हैं .


15 January, 2009

सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स..............



फूलों में कहाँ अभिमान होता है

गुलाब को होती कहाँ सुपेरिओरिटी काम्प्लेक्स

कहाँ करता है गेंदे का फूल महसूस छोटा अपने को

सभी मिलकर के पुरी करते हैं बगिया के सपने को

तभी एक माली आता है , बहुत वो मुस्कुराता है

उन्ही फूलों को गूथ कर एक माला बनता है

फूल मिलते हैं फूल से और फैल जाती है खुशबू

नहीं लड़ते वो कभी ,मैं हु कौन कौन तू

पर इंसान को देखिये सभी आपस में लड़ रहे

अब कौन माली उनसे आ कर ये कहे

की हर इंसान जैसे अलग फूल होता है

इश्वर के बगीचे का यही मूल होता है

क्यो चाहते हो कमल को गुलाब बनाना

हर फूल तो मेरी नज़र एक फूल होता है .





एक गीत मैं लिखूंगा आवाज तुम दे देना .......




एक गीत मैं लिखूंगा आवाज तुम दे देना


शब्दों के इस लड़ी को एहसास तुम दे देना


आँखें तुम्हारी इनमे वो भाव भर सकेगी


होठों पे सजा कर के आगाज़ तुम कर देना


की प्यार ये हमारा मोहताज़ नही युग का


इस प्यार के धमनी में उल्लास वो भर देना


तुम हो तो जहाँ है ये ,नही तुम तो है उदासी


इस गीत के जेहन में आभास ये भर देना.


















14 January, 2009

माँ मुझे तुम हमेशा याद आती हो ..............


माँ मुझे तुम हमेशा याद आती हो

क्या अभी भी तुम कोई लोरी सुनाती हो

जानती हो जब भी मैं होता हूँ दुविधा में

तुम ही हो हर बार जो मुझको बचाती हो

आज भी मन मेरा बहुत उदास है

माँ , माँ का गोद होता कितना खास है

काश होती तुम तो कर लेती दुःख हरण

माँ तुम्हारे प्यार को तरस गए नयन

माँ मेरा अनुरोध है एक बार आ जाओ

बुझ गया जो ज्योत मन में फिर जला जाओ

कुछ करो माँ तुम हमेशा साथ ही रहो

वचन देता हूँ मानूंगा जो भी तुम कहो

टूट जाऊंगा मैं माँ आजाओ तुम यहाँ

चरणों में ही है तुम्हारे मेरा ये जहाँ .





जो सच है उसे स्वीकारना जरुरी है................



जो सच है उसे स्वीकारना जरुरी है

झूठ के सहर में तो जिन्दिंगी अधूरी है

कैद की जंजीरें हो लोहे या फिर सोने की

कैद में रहना एक मजबूरी है .

13 January, 2009

कैसे होगा जीना अब मन तू ही मुझे बतादे


कैसे होगा जीना अब मन तू ही मुझे बतादे

लम्बी निद्रा से मन अब तो झखझोर जगादे

खोल दे आँखे ऐसेकी फिर नींद जाए आँखों से भाग

चिंगारी भी बुझ जाए न बाकी रहे क्रोध की आग

ruku तभी मैं जब मिल जाए लक्ष्य मुझे जीवन का

चुकता कर लू मैं हिसाब जीवन के एक छन छन का

कर लू आशाएं पुरी जो अब तक नही तलासी

अपने अरमानो को अब चड़ने न दूंगा फांसी

हर कुत्ते का दिन होता है ऐसे मैंने सुना था

अब वो रास्ता मैं जाऊँगा मैंने जिसे चुना था
जो थी संभावनाएं वो फिरसे जाजगी मन में

लहरें खुशी की उठ रही है अब तो मेरे जेहन में .






12 January, 2009

आंखों में फिर नमी है


कुछ तो कमी है

तुम्हारे आंखों में फिर नमी है

क्या कोई है जो तुम पर हावी है

तुम्हारे दुःख की तेरे पास ही तो चाभी है

तोड़ो चुप्पी की कहीं चेतना न लुट जाए

तुम्हारे धैर्य का घडा न कहीं फुट जाए

कहीं अग्नि न क्रोध की जलादे प्यारा चमन

तोड़ो चुप्पी लुट जाए नही चैनो अमन

वो जो भी है तुम न धीरज खोना

आंसू आए तो भी तुम मत रोना

जवाब उसको भी देना है खुदा के घर में

लग चुकी है घुन तो उसके भी जड़ में.

कभी रोता है मन होता उदास है


कभी रोता है मन होता उदास है

जाने किस चीज की इसे तलाश है

खो गया हूँ मैं किस मायाजाल में

क्यूँ ये दिल बदहवास है

कभी था बिल्कुल अकेला मैं

आज महफिल मेरे पास है

खोने को कुछ भी नहीं अब

जिंदगी जिन्दा लाश है


11 January, 2009

अज्ञान का ज्ञान ...............


तुम कहते हो मैं किसी काम का नही

कुछ आता नही मुझे

मैं करता हूँ स्वीकार

अपने अज्ञान का ज्ञान है मुझे

पर तुम भी सर्वज्ञाता नहीं

सुनो संतान मैं भी हू उसी इश्वर का

जिसके तुम हो

फिर क्यूँ तुम बार बार मेरे अंतरात्मा को ललकारते हो

अपशब्दों के तीर निरंतर मारते हो

करते हो हर समय मेरा अपमान

दिखाना चाहते हो मुझे निचे

तुम्हारे इन सभी करतूतों से मुझे बल मिलता है

सुनो इसे जारी रखना

मैं तुम्हारे संकुचित सोंच से प्रेरणा लेता हूँ

तुम्हारे अपशब्दों के बदले तुम्हे शुभकामना देता हूँ .

मन के प्रोग्रम्मिंग ..............


मन के प्रोग्रम्मिंग में कुछ लोचा है

ऐसा क्या तुमने भी कभी सोचा है

क्योँ की अंहकार का वायरस हार्ड डिस्क में कुछ ऐसे आया है

जिससे सिस्टम पुर्णतः बैठने वाला है

मित्र मेरी मानो दाल में कुछ काला नहीं

पुरा दाल ही काला है

क्युकी तुम तुलना करते हो

अपने सक्सेस से जयादा दूसरों के बर्बाद होने पर

तुम्हारा ध्यान है

येही तुम्हारे सिस्टम के लिए वायरस के सामान है

थोथी दंभ , पाखंडी चेहरा और घमंड के चक्रव्यू से

जब तक तुम बाहर आओगे

तबतक अपने सिस्टम की रक्षा कैसे कर पाओगे

तो आओ आज ही अपग्रेड करते हैं

शुभ इक्षा का सश्क्त एंटी वायरस इसमे भरते हैं

ताकि तुम्हारा सिस्टम तुम्हारे लिए करे वर्क

और दुनिया भरके वायरस का कोई न पड़े फर्क


मैं बिस्तार पाना चाहता हूँ

मैं बिस्तार पाना चाहता हूँ
जो निराधार है उसका आधार पाना चाहता हूँ
उड़ना चाहता हूँ पंखो को फैलाकर
चाहता हूँ करना आकाश से संवाद
पिंजडे को तोड़ होना चाहता हूँ आजाद
दोस्त करो कुछ ऐसा जैसा जामवंत ने किया था
और हनुमान के अन्दर की शक्ति जाग गई
और किया उसने नभ उदघोष
तोड़ दो लम्बी निंद्रा मेरी, रह जाए न ये अफसोश .

10 January, 2009

परिभाषा काव्य की


मौन से प्रतिस्फुटित शब्दों की श्रंखला

जब भावनाओ के बाँध तोड़ जाती है

मेरे विचार से वही काव्य कहलाती है

जब जज्बातों के चौखट से सजी शब्दों

की दुल्हन निकलती है

मेरे विचार से वही कविता में ढलती है

जब मन का आक्रोश तांडव करता है

और खंडित होता है वीवेक

तभी काव्य का होता है मस्तकाभिषेक

जब स्वयं कलम चलती है

कागज़ भी लिखवाने को मचलती है

तब जब कवि हृदय व्याकुल हो रोता है

मेरे विचार से वही काव्य होता है.



कभी तुम मुस्कुराते थे..............


कभी तुम मुस्कुराते थे तो बचपन याद आता था

कभी तुम गुनगुनाते थे तो आ जाती थी उमंग

पर तुम खामोश हो गए तुम्हारी याद रह गई

मन में अधूरी बहुत सी संवाद रह गई

लबों से शब्द गुम गए जुबान भी जैसे सिल गई

कहाँ हो तुम चले आओ मुझे कुछ बात कहना है

जो भी हो अब तुम्हारे संग रहना है

चले आओ की अब मैं यहाँ बिल्कुल अनाथ हूँ

मुझे मन में है ये यकीं की मैं तेरे साथ हूँ

अगर तुम आओगे यहाँ तो मुझको माफ़ कर देना

मेरे वजूद का ज़रा उचित इन्साफ कर देना.



सवेरा


गर मुर्गा बांग नही दे फिर भी हो ता है सवेरा

फिर काहे का झगडा काहे का तेरा मेरा

डुगडुगी बजाता मदारी और मेला यह संसार

पर हर इंसान ये सोंचे उसके कंधे सब भार

उसके कंधे सब भार वही है सब का तारनहार

यही सोंच सब होता गोरख धंधा और व्यापार

पर तू तो है अंतर्यामी मुर्गे को ये बतलादे

कल फिर सूर्योदय होगा तू बांग दे या न दे

फिर ठंडी हवा चलेगी बगिया में खिलेंगे फूल

होगी चहल पहल और बच्चे जायेंगे स्कूल

फिर मन्दिर घंटी बजेगी और मस्जिद में होंगे नवाज

तेरी लाठी में है दम दिखला दे प्रभु तू आज

09 January, 2009

चक्रभिऊ


अभिमन्यु के तरह चक्रवियुह में नहीं चाहता जाना मैं

जहाँ मेरे अपने मुझे बेदर्दी से मार देंगे और करेंगे अपना महिमामंडन

कहलायेंगे वीर

मैं तो करना नहीं चाहता कोई युद्ध क्यूंकि होता कहाँ इसमे धरम

मौत के नाच का दर्शक भी नहीं बनना चाहता मैं

तुम इसे कायरता कहोगे और मैं प्रतिकार नहीं करूँगा

क्यूंकि परिभाषाएं भी तुम देते हो और तय करते हो नियम युद्ध के तुम्ही

ऐसे में मैं मौन रहता हूँ और तुम समझते हो अपनी जीत इसे

गर तुम कुछ कदम साथ चलते तो नम होती आँखें तुम्हारी भी

बदलती तुम्हारी धारणाएं और शायद तुम समझ पाते की अंहकार तुम्हारा

कितना है घातक जो दूसरो के वजूद को मलिन करता है

हर पल तुम्हारऐ हांन्थों कोई न कोई अभिमन्यु मरता है .

चलो उस राह पर चलें ....................


चलो उस राह पर चलें जहाँ हर मोड़ मंजिल हो

जहाँ न हो कोई गम और न कोई महफ़िल हो

हो जहाँ मन मौन उस राह जाना है

ग़मों को छोड़ कर kuch naya अब गुनगुनाना है

कहीं रुकना है नही, न कहीं डेरा जमाना है

जीवन के इस बिसात पर नया कुछ आजमाना है

तुम अगर साथ हो मेरे तो फिर किस बात का है गम

तुम्हीसे तो मेरा रिश्ता यहाँ सबसे पुराना है

तुम जानते हो सब फिर भी तुमको बताना है

की पीछे मेरे पड़ा ये जालिम जवाना है

मैं हूँ नही वो मौज जो खो जाये सागर में

चट्टानों से टकराकर भी साहिल को तो पाना है...

जीत

आदत बिगड़ गई है क्यूँ की मन है स्वछंद
हमेशा जीभ वहां अटक जाती है जहाँ नहीं है दांत
और बन जाती है आभाव ही स्वाभाव
फिर लगता है कमी है जीवन में
और दुःख झेलता है इंसान
बन जाता यूँ जीवन समसान
तो सोयी चेतना कब जागेगी मालूम नहीं
उदास मन उदास ही रह जायेगी
कल्पना की पंख लिए कब तक करोगे विचरण दुःख के नभ में
आओ चलें मन को करने नमन तोडे सारे बन्धन
क्यूँ की झेल रहे हो डबल दुःख तुम

08 January, 2009

आज से शुभ इक्षा रखनी है

मैं सुदामा तुम कृष्ण हो और आज मैं आया हूँ तुम्हारे पास
जानते हो इस बार कुछ भी नहीं है देने को तुम्हे
सिवाए इस विचार के की मांगने से कहाँ कुछ मिलता है
देते तो तुम हो हमेशा बस अब वो आँखें दे दो जो देख सके
इस संसार के परे उस सोर्स को जहाँ से सब कुछ आता है
क्योकि मन तो हमेशा श्रोत को भूल साधन में उलझ जाता है

कवि हृदय जीत