31 December, 2009
नए पर पुराने का पैबंद
लगाना मत मेरे मित्र
ये तुम्हारी हरकत है
बिलकुल अलग और विचित्र
देखना इस बार भी हावी न
हो आदत वो पुरानी
ये है मौका फिर से
रचना नयी कहानी ...................
फिर एक बार चला कलम रे कागज़ कोरे पर ...........
चला कलम रे कागज़ कोरे पर
और जो दिल ढोये था बोझ
मन के बोरे पर
गिरा वो ऐसे सर से
मिल गयी दिल को वो आनंद
आज मोरा थिरके कदम हो के मगन स्वछंद
और कहूँ का दोस्त
बहुत कुछ कहते मेरे कदम
नशा जो जीने में है
न दे विस्की और न रम
हमरा बात मानो तुम
त्यागो ये अहंकार का बोझ
तभी कहीं हो पायेगी अंदर के वो खोज .................
13 December, 2009
कदम तो मरे ही हैं चला रहा है कोई ............
जब गिरा था डगमगा के
पर क्या पता आगे कोई
मिलेगा मुस्कुरा के
खुदको सम्हाल के
बस था दो कदम बढ़ाया
तपती धुप में जैसे
मिलगया हो छाया
आशा की किरण फिर से
आंखों में जगमगाई
और खो गया कहीं वो
कर हौसला अफ़जाई
उस मुस्कुराहाट का
मैं सदैव हूँ आभारी
और उस समय से मैंने
चलना रखा है जारी
गिरता हूँ सम्हालता हूँ
उठ फिर से मैं चलता हूँ
की कदम तो मरे ही हैं
चला रहा है कोई
आंखों को लगता आगे
मुस्कुरा रहा है कोई
उसकी हँसी का मैं हूँ
उदाहरण अलबेला
आनंद की बारिश
मैं भीगता अकेला ..................
हर काव्य जैसे मेरी हो मलयागिरि चंदन........................
19 November, 2009
वो शब्द मेरे थे पर बोलता था कौन
आज वो अकेलापन
अंधे को मिली आँखों हो तो मांगे और क्या
04 November, 2009
काश कोई होता जो तिनके का सहारा देता ..........
कोई आक्रोश है जो मेरे जेहन में जिन्दा है
ऐसा लगता है पिंजडे में ज्यूँ परिंदा है
ख्वाब उड़ने के गगन में संजोये थे मैंने
हकीकत मेरे वजूद पर शर्मिंदा है
31 October, 2009
एक बार मेरे मनमीत मेरे ये गीत को देना स्वर .........
प्यार जब दिखावे में हो जाता है प्रविर्तित ......................
कोई जो ख़ास है अपना तमाचा मार जाता है
कोई जो ख़ास है अपना
तमाचा मार जाता है
येही वो पल जिसमे
इंसान हिम्मत हार जाता है
मुझे ऐसे तमाचों ने
झकझोरा निरंतर है
मेरे भी तमाचे होते पर
उसमे मूल अन्तर है
मैं हिंसक नही होता
इश्वर की दया मुझ पर
पर जब भी ऐसा होता है
मैं भावुक हो जाता हूँ
कलम ख़ुद चलने लगती है
मैं कविता सुनाता हूँ
हर एक रचना मेरी है
उन्ही तमाचों का ही फल
कभी ये मौन का संकेत
कभी अंदर का कोलाहल
कुछ भी हो मगर मैं हूँ
तमाचों का आभारी
बल जो इनमे है शायद
मेरी रचना बनाती है
मेरे निश्छल ह्रदय पे
छाप अपनी छोड़ जाती है ......................
25 October, 2009
स्लम डोग
रास्ता हो कोई मंजिल को हम पायेंगे ................
चल सके उस राह पर
होकर हम पूर्ण मगन
जिस राह पे चला न हो कोई
हो विस्वास हो साहस की
रास्ता हो कोई मंजिल को हम पायेंगे
जीत का हम जश्न शिखर पे मनाएंगे
16 October, 2009
दीप जलना है.........
जो अन्धकार अंदर उनको भी हटाना है
उस कालकोठरी में भी एक दीप जलना है
जहाँ रौशनी वर्जित है और घोर अँधेरा है
एक दीप जो जल जाए मन के उस कोने में
रात के प्रसव में छीपा सवेरा है ......................
29 September, 2009
आंसू अगर ये मेरे कुछ भाव जागते हों ..............
कुछ बात अधूरी .......................
28 September, 2009
आवाज़ मेरे अंदर की कहीं शोर न बने
आकाश में होती टिकी नज़रें जो मेरी हैं
देखना प्रभु कहीं तेरी हीं चितचोर न बने
मालूम है मंदिर में नहीं
मस्जीद में नहीं हो
तुम प्रेम के एहसास में
पर हठ जिद्द में नहीं हो
चन्दन में नहीं हो तुम मुंडन में नहीं हो
हर बात के हामी में खंडन में नहीं हो
तुम हो ते हो सहज में और सरल में
तुम ही तो होते हो कर्मों के हर फल में
तुम आँखों में बसते हो रहते हो हर जगह
लड़ते हैं ये पुतले फिर यूँ हीं बे वजह
आना तुम्हारा जीवन में बसंत की तरह
प्रारंभ नयी हो जहाँ वो अंत की तरह
जीवन बना दो मेरी समदर्शी हो जाऊं
सराबोर आनंद से मैं संत की तरह ..........
10 September, 2009
आकाश में पदचिन्ह .........
09 September, 2009
अन्धकार से लड़ना नहीं
एक दीप जलना है
मन के आँगन में जो कैक्टस पनप गए हैं
वहां पे जाके आज तुलसी को लगाना है
जो दौड़ है ये अँधा और छोर नहीं कोई
काटोगे फसल तुम वो जो बीज तुमने बोई
फिर हल्ला हंगामा क्यूँ
फिर रोज़ ये ड्रामा क्यूँ
की दुनिया हरामी है और लोग हैं कमीने
सच तो है बस इतना मरने में तुम उलझे हो
ये जदोजहद में आया नहीं तुम्हे जीने.
22 August, 2009
आहट तुम्हारे आने की प्रभु आज मेरे द्वार ......
शंकर स्वयं तुम्ही हो हनुमन.............
21 August, 2009
फिर कलम मजबूर है कागज़ के जिद के सामने ...........
कागज़ के जिद के सामने
प्रश्न है की क्यूँ बिताया
लंबा बनवास रामने
क्यूँ राम मर्यादा पुरषोतम
और रावण पापी है
दोनों की राशि है एक
फिर राम क्यूँ प्रतापी है
माँ कुमाता नही होती
फिर कैकेय को क्या कहें
मंथरा दासी है
फिर बिश्वास उसका क्या कहें
राम ले अग्नि परीक्षा
सीता तो निर्दोष है
कौन सी मर्यादा है ये
कैसा शब्दकोष है .............
20 August, 2009
मेरा काम है चंदन को घीस कर नाली में बहाना ..........
ह्रदय पर हावी है मस्तिष्क ......
काव्य में जब समाती है
कलम की आवाज से
कागज़ भी चौक जाती है
विद्रोह जारी अंतर्मन का
जीत उसकी चाह है
ह्रदय पर हावी है मस्तिष्क
चेतना गुमराह है
मन की पीड़ा है यथावत
ह्रदय है खंडित पड़ी
मन को मारना यहाँ
टेढी खीर है बड़ी ...........
19 August, 2009
कोई आने वाला है
खोल दो दरवाजे मन के
और वातायन से हवा आने दो
मलिन मन को रौशनी में नहाने दो
ताकि तिमिर जो अंदर का है वो
होजाए छूमंतर
अन्धकार से लड़ना कहाँ निरंतर
बस उजाले में डुबकी लगाना है
18 August, 2009
17 August, 2009
मैं बकरा तुम कसाई
फिर इतना प्यार क्यूँ भाई
मौत का माला गले में टाँगे
हरी पतियाँ खाता हूँ
तुम जब प्यार दिखाते हो
तो मैं घबरा सा जाता हूँ
जानता हूँ ये पत्ते तेरे
मौत के पत्र-प्रमाण हैं
और जो पानी पिता मैं हूँ
अटकी मेरी जान है
तू कसाई और मैं बकरा हूँ
नियति मौत है मेरी
मरना भी उतना सच्चा है
जितनी जीवन तेरी
मरकर अमर नाम नही जिसका
मैं वैसा हूँ बकरा
मौत के क्रम में तुझसे मेरा
न कोई झगडा लफड़ा
मेरे मौत के बाद दूसरा बकरा फिर आएगा
पर तू कसाई जीवर भर तो कसाई ही रह जाएगा ..............
श्रीजन की कोई क्या सीमा कहाँ पे होती कोई हद है .
येही वो पल होते हैं जब मैं मौन होता हूँ
कोलाहल जो अंदर की और बहार का जो है शोर
येही वो समय है जिसमे बोता बीज मैं चहु ओर
मैं वो बीज बोता हूँ जो बन जाते बरगद हैं
श्रीजन की कोई क्या सीमा कहाँ पे होती कोई हद है ..........
08 August, 2009
डुगडुगी मदारी बजायेगा .............
बन्दर तो नाच दिखायेगा
और इशारे समझ के वो
लगाता रहेगा गुलाटी
मदारी के हाँथ में लाठी
रंगमंच पर हमभी तो बस
कलाकार के भाँती हैं
वो हाँथ सूत्रधार की है
जो हमसे ये करवाती हैं
पर एक दिन ऐसा आता है
जब अंहकार छु लेती है
तब सूत्रधार समझता है
देता संकेत निरंतर है
जीवन और मौत में तेरे
बस एक साँस का अन्तर है ..................
07 August, 2009
मैं जीन्दगी का साथ निभाता चला गया
05 August, 2009
04 August, 2009
तुम हो ये महत्वपूर्ण है ..............
01 August, 2009
मनोरंजन तुम्हारा हो जरूरी तो नहीं है ................
जरूरी तो नहीं है
होना वो जरूरी है
जो सचमुच में सही है
फिर अच्छा लगे तुमको या लगे बुरा
काम जो अधूरे हैं करना उसे पूरा
तुम फिर कभी आना
राजनीति से खेद है
बस येही कारण है
जो मेरा मतभेद है .................
23 July, 2009
अर्जुन हूँ मैं और मैं ही हूँ वो पार्थसारथी ......
12 July, 2009
एक बार मुस्कुरादो मेरे रचियता ..............
तांडव न हो कोई न अब कोई रास हो .............
09 July, 2009
हर बीज में निहित है शक्ति घने जंगल की.........
मुझे मरना है एक बार
डर के आगे जीत है
पर मरने के डर से हर कोई भयभीत है
जैसे जन्म एक सच है , मौत भी यथार्थ है
आज रणभूमि में फिर दिग्भ्रमित पार्थ है
मुझे मरना है एक बार
मैं रोज़ रोज़ के मौत से घबराता हूँ
जिधर भी आँखें जाती हैं
मौत का नंगा नाच दिखाती है
मुझे दे दो आजादी
कर दो मुक्त बंधन से
मेरे मलिन ललाट पर
तिलक दो चंदन से
मैं मौत का पुजारी नही
नाही मैं जीवन का व्यापारी हूँ
मैं एक सम्मान जनक मौत का अधिकारी हूँ
मेरा मरना मेरे अभिव्यक्ति के लिए जरूरी है
अभी भी मेरी जीवन गाथा अधूरी है
07 July, 2009
जब साथ हो कल्पवृक्ष तो क्यूँ चाह बीज की ...........
गुरु तुम पूर्ण माँ हो
25 June, 2009
छुना है आसमान ................
घुटनों के बल चलना नहीं
छुना है आसमान
जो जीवन के दाव पेंच हैं
उनसे करो पहचान
जरूरी नहीं तुम्हारा हर निर्णय सही हो
पर तुम बीज बोते रहना बिश्वास का
क्यूंकि अनुभव तुम्हारा लेजायेगा आगे तुम्हे
जहाँ तुम्हारा स्वछंद विचार
तुम्हे नई दिशा का ज्ञान कराएगा
तुम्हारा निर्णय छमता ही तुम्हे पंख देगा लम्बी उड़ान का
वही तुम्हे जंजीरों से स्वतंत्र कराएगा .............
24 June, 2009
पन्गुइन के सहर में मैं एक मोर हूँ ............
22 June, 2009
डर के बाद होता जीत है
21 June, 2009
पापा आयी लव यू ............
20 June, 2009
अपनी ही दुनिया में मैं आज अजनबी .........
शब्दों के जंगल में
परिभाषाओं की बाढ़ है
भावनाओं का मोल क्या
यहाँ अनुभव लाचार है
होड़ है लगी आगे मैं निकल जाऊँ
कोई ऐसी नयी मैं चाल चल जाऊँ
लोगों को हराकर करूँ मैं जीत का एलान
अपनी बना सकूँ भीड़ से अलग पहचान
इसी क्रम में भूला मैं इंसान था कभी
अपनी ही दुनिया में मैं आज अजनबी ........
मुझे बतखों के स्कूल में नही जाना है
आकाश के विस्तार को पाना है
मुझे बतखों के स्कूल में नही जाना है
मुझे संग चाहिए उड़ने वाले पंछी का
जो उड़ना सिखादे
मेरे अंदर का आन्जनेय जगादे
मुझे जामवंत जैसे गुरु की तलाश है
जो बस मेरे संभावनाओं पर सोंचने पर करे मजबूर
देदे वो विश्वास की उड़ सकूँ पंख पसार सुदूर
और भर लूँ आसमान को अपने बाँहों में
मुझे विचरण करना है आकाश के अनजान राहों में .......................
15 June, 2009
मैं जीवन की पहेली को सुलझाने की चेष्टा नहीं रखता .............
कौन है अपना होने को
था अकेला पहले भी
और आज भी अकेला हूँ
मैं इस राह का पथिक पहला हूँ
पदचिन्ह कहाँ जिसे मैं करूँ अनुसरण
चलता हूँ जैसा कहता मेरा अन्तः करण
मैं जीवन की पहेली को सुलझाने की चेष्टा नहीं रखता
मैं तो खुश हूँ अपनी यात्रा के अनुभवों से
और बताना चाहता बस इतना
की मैं मुर्ख और दुनिया सयाना है
मैं भेड़ की भीड़ से अलग हूँ
मुझे अपना रास्ता स्वयं बनाना है ...............
10 June, 2009
दधीची स्वीकार करो मेरा मौन अभिनन्दन
शिव जी जस्ट वान्ना से हेल्लो
01 June, 2009
जब रास्ते मंजिल हों तो राही को क्या डरना
31 May, 2009
मैं ढूँढता हूँ मौन में जीवन के सार को ....................
26 May, 2009
हे कृष्ण कब होगा तुम्हारा आगमन
24 May, 2009
संगीत जो बजाता रचयिता ..................
23 May, 2009
डर के बाद जीत है
जिसपर जाने से डरते हैं लोग
मुझे अच्छा लगता है जब मेरे
आत्मविश्वास से टूटते हैं धारणाएं
और फिर जुड़ती है संघर्ष की अनेक कथाएँ जीवन से मेरी
मेरे इन कथाओं में मेरी सफलता की बात है
पर हर अन्धकार को चीरती सूर्योदय का प्रकाश है
मेरे कहानी में अन्धकार मेरे मन की मनमानी है
और सूर्योदय मेरे आत्मविश्वास की निशानी है
हर डर के बाद जीत है
हार मेरे स्वाभाव से भली भाति परिचित है .....................
मेरे लिए रास्ते की समस्यायें अर्ध विराम है
15 May, 2009
हम बिहारी थूक कर नहीं चाटते ..................
13 May, 2009
मेरी अभिव्यक्ति के हर एक पहल में व्याप्त वही सर्वशक्तिमान है .......
पर निष्कर्ष में उसका योगदान है
मेरी अभिव्यक्ति के हर एक पहल
में व्याप्त वही सर्वशक्तिमान है
मेरी जिन्दगी मोहताज़ नही
तुम्हारे मापदंड और पैमाने का
रूह आजाद है मेरी
कोशिश न करना मेरी सोयी शक्ति जगाने का
तुम्हारे ललकारने से युद्घ करता नही मैं
हिजडों से मैं नही लड़ता
मरी हुई शेर के पूंछ का बाल काट कर दिखाने से तुम
शुर वीर नही कहलाओगे
जीवन के रणभूमि में पाखण्ड कर कैसा शौर्य पाओगे ..................
मेरा एक दोस्त नपुंसक है
पर उसे भी जीने का हक़ है
पर मर्यादा से परे लोगों का अपमान
और फिर बन जाना बिल्कुल अनजान
आग लगाना उसके जीन में है
मौजूदगी उसकी हर सीन में है
हम उसे अमर सिंह कहते हैं
क्यूंकि साथ उसके जो भी रहते हैं
उन्हें पहले परजीवी बनातें हैं
और फिर उनके बर्बादी पर भोज खातें हैं
इनके अन्दर का जानवर कही आपको न बनाये शिकार
बच के रहिये नही तो जल्द लूट जाएगा आपका घर बार ...........
मैं जाग गया लम्बी नींद से तुम कब जागोगे
इस तरह कब तक चलेगा नंगा नाच तुम कब भागोगे
इज्ज़त उतर गई है पर बेशर्मी तुमको विरासत में मिली है
ऐठन मौजूद है शायद रस्सी अभी पुरी नही जली है
किसी को इतना मत ललकारो भस्मासुर की
भगवान् को ख़ुद आना पड़े
गर अंहकार के नाच में ख़ुद को भस्म करना है
तो कोई रणनीति काम नही आयगी
भस्म हो जाओगे गर गलती से भी हाथ सर पर जायेगी
वहां पे कोई मदद को नही आएगा
और ये जो तेरे हिजडो का फौज है वो मात्र ताली ही बजायेगा .....
मन के भीतर चुनाव चलता है ................
10 May, 2009
तुम्हारे प्रखर व्यक्तित्व को माँ साष्टांग प्रणाम............
चिलचिलाती धुप में शीतलता का आभास है
माँ के क़दमों में दुनिया समायी है
चरण रज माँ की मैंने तिलक बनाई है
लगाया है मैंने उन्नत ललाट पे अपने
आर्शीवाद उसके और मेरे सपने
मिला मुझको सबकुछ माँ तुमको पाकर
जीवन की श्रोत तुम को नमन शीष झुकाकर
स्वीकार करो माँ मेरा मौन अभिनंदन
खुशबु ही देता जलता भी जो चंदन
शब्दों के परे अनुभूति , माँ तेरे अनेको आयाम
तुम्हारे प्रखर व्यक्तित्व को माँ साष्टांग प्रणाम............