09 November, 2010

अनपढ़ जीवन की मायावी गाथा

कोई लूट गया मेरा बचपन
और ले गया मेरा पतंग
कैद हुआ चारदीवारी में
शुरू स्कूली आतंक
रंगीन दुनिया थी अपनी
अब रह गयी स्वेत श्याम
छड़ी तमाचे गाली से जीना हुआ हराम
मास्टर जी के तिरस्कार ने
विद्रोही था बनाया
हमने भी नकामयाब
आंदोलन कई चलाया
नहीं हुआ कुछ परिवर्तन
मैं होता रह गया फेल
पता नहीं कब व्यस्क हुआ
शुरू कब जीवन का हुआ खेल
शिक्षा के इस मायाजाल में
सबकुछ जब गया लूट
चन्दन और राख लपेटे बना बाबा अबधूत
पाखंडी इस रूप में धन भी आया अकूत
मास्टर भी अब आके मेरे मठ पर टेके माथा
ये है मेरे अनपढ़ जीवन की मायावी गाथा .

08 November, 2010

बददिमाग कवि







आज फिर जीने की तमन्ना है
और मरने का इरादा भी
क्या विरोधाभास है
पर मेरे लिए एक सुखद एहसास
क्यूंकि मरने का इरादा रखना उतना ही
सच है जितना जीने की जिजीविषा
ये एक आध्यात्मिक तथ्य है
जन्म और मृत्यु के बीच का अंतराल
जीवन का गुढ़ सत्य है
मैं भी उसी अंतराल का अदना अनुभवी हूँ
लोग कहते हैं मैं एक बददिमाग कवि हूँ..........

30 September, 2010

सागर का बूँद हूँ मैं , या हूँ फिर बूँद में सागर

आवाज़ मेरी मद्धम ही सही
पर जोश जो मेरे अंदर है
जो हलचल है ऊपर ऊपर
भीतर तो शांत समंदर है
तुम सोंचते हो मैं अकर्मण्य
युहीं पागल सा रहता हूँ
पर मैं तो धारा नदी का हूँ
सागर के ओर ही बहता हूँ
सागर से मिलना लक्ष्य मेरा
और हो जाना अस्तित्व शून्य
कर्मो की चिंता है किसको
है किस के लिए पाप और पुन्य
सागर का बूँद हूँ मैं , या हूँ फिर बूँद में सागर
आनंदित हूँ अकिंचन मैं अपना अस्तित्व मिटाकर .........

सागर का बूँद हूँ मैं , या हूँ फिर बूँद में सागर

आवाज़ मेरी मद्धम ही सही
पर जोश जो मेरे अंदर है
जो हलचल है ऊपर ऊपर
भीतर तो शांत समंदर है
तुम सोंचते हो मैं अकर्मण्य
युहीं पागल सा रहता हूँ
पर मैं तो धारा नदी का हूँ
सागर के ओर ही बहता हूँ
सागर से मिलना लक्ष्य मेरा
और हो जाना अस्तित्व शून्य
कर्मो की चिंता है किसको
है किस के लिए पाप और पुन्य
सागर का बूँद हूँ मैं , या हूँ फिर बूँद में सागर
आनंदित हूँ अकिंचन मैं अपना अस्तित्व मिटाकर .........

02 July, 2010

प्रेम परिभाषा से परे - रणजीत कुमार की कविता | हिन्दीकुंज

प्रेम परिभाषा से परे - रणजीत कुमार की कविता हिन्दीकुंज

प्रेम परिभाषा से परे - रणजीत कुमार की कविता | हिन्दीकुंज

प्रेम परिभाषा से परे - रणजीत कुमार की कविता हिन्दीकुंज

आवारा क्रांतिकारी हूँ - रणजीत कुमार की कविता | हिन्दीकुंज

आवारा क्रांतिकारी हूँ - रणजीत कुमार की कविता हिन्दीकुंज

जामवंत - रणजीत कुमार की कविता | हिन्दीकुंज

जामवंत - रणजीत कुमार की कविता हिन्दीकुंज

जामवंत - रणजीत कुमार की कविता | हिन्दीकुंज

जामवंत - रणजीत कुमार की कविता हिन्दीकुंज

बौद्धिक दिवालियापन - रणजीत कुमार की कविता | हिन्दीकुंज

बौद्धिक दिवालियापन - रणजीत कुमार की कविता हिन्दीकुंज

30 May, 2010

रोया क्यूँ


रोया क्यूँ
देस विकास के पथ पर है
मल्टीनेशनल है
बर्गेर है पिज्ज़ा है
शोपिंग माल हैं
और है केबल टीवी
शायद तुम दुखी हो
क्यूंकि माल के पीछे है झोपड़ी
भूख के पीछे राजनैतिक खोपड़ी
पिज्ज़ा रोटी दाल क्यूँ नहीं
क्यूँ विकास आंकड़ो में उलझी है
और भूख सच्चाई है
शायद यही कारण होगा
तेरी आँख भर आयी है

प्रेम परिभाषा से परे ...........


जब प्रश्न ही उत्तर हो तो
फिर ये कैसी जिज्ञासा है
प्रेम अनुभव ही मात्र है
तो कैसी परिभाषा है
जब अस्तित्व ही जीवन का
है प्रेम से उत्पन्न
और हर दिशा में है
जीवंत उदाहरण
भौरे की गुंजन हो या
चिड़ियों की चहचहाहट
हो फूल का खिलना
या प्रेयसी की आहट
वसुधा पे जो भी है
वो है प्रेम का विस्तार
हर ह्रदय के स्पंदन
में बस एक ही है सार
रचियता तुम्हारी लीला
का आधार है यही
सागर अथाह है
मजधार है यही
मैं तो हूँ नतमस्तक
तुम्हारे मंच पर
और दुखी हूँ लोगों के
छल प्रपंच पर
मुझे भी प्रेम की शाश्वत अनुभूति दो
हो प्रेम ही उत्पन्न वो पीड़ा प्रसूति दो
अनुरोध सुनो प्रभु हो प्रेम का जनम
एक मात्र उसी अनुभव में थिरके मेरे कदम
परिभाषा कोई हो अनुभव जरूरी है
प्रेम के अभाव में जीवन अधूरी है ................

23 May, 2010

तेरी गलियों में न रखेंगे कदम


तेरी गलियों में न रखेंगे कदम

आज के बाद

क्यूंकि मुन्सिपलिटी रोड बना रही है

ऐसा सुनने में आया है

तो अब ये गाना मैं मोंसून में गाऊँगा

जब बारिश में रोड फिर से होजायेगी गली

फिर भी गीत यही गाऊँगा

जब अगले वर्ष फिर से सड़क निर्माण का निकलेगा टेंडर

तब तेरी गली आऊंगा

16 May, 2010

ज्वालामुखी.........


ज्वालामुखी के मुख से
निकलते हुए लावे की तरह गर्म
मेरा कुंठित एवं क्रोधित मर्म
चोट बाहरी नहीं होता
कभी लगता अंदर भी है
ज्वारभाटा उठती है यूँ
भीतर कोई समंदर भी है
प्रश्न और उत्तर के परे अनुभव
कभी झकझोर जाते हैं
कभी भाव आँखों का सहारा ले
आंसू बन निकल आते हैं
पर माध्यम जो भी हो भावनाएं हमेशा
सीमाओं का अतिक्रमण करते है
तभी तो अचानक युहीं लावा की तरह
ये भाव मानस पटल पर बिखरते हैं
मेरा वजूद इन्ही सुसुप्त ज्वालामुखी की भाँती है
जब बिष्फोट होता है , लोग कहते हैं जज्बाती है .............

ज्वालामुखी.........

ज्वालामुखी के मुख से
निकलते हुए लावे की तरह गर्म
मेरा कुंठित एवं क्रोधित मर्म
चोट बाहरी नहीं होता
कभी लगता अंदर भी है
ज्वारभाटा उठती है यूँ
भीतर कोई समंदर भी है
प्रश्न और उत्तर के परे अनुभव
कभी झकझोर जाते हैं
कभी भाव आँखों का सहारा ले
आंसू बन निकल आते हैं
पर माध्यम जो भी हो भावनाएं हमेशा
सीमाओं का अतिक्रमण करते है
तभी तो अचानक युहीं लावा की तरह
ये भाव मानस पटल पर बिखरते हैं
मेरा वजूद इन्ही सुसुप्त ज्वालामुखी की भाँती है
जब बिष्फोट होता है , लोग कहते हैं जज्बाती है .............

पहचान कौन ?


पहचान कौन ?
एक मात्र सवाल और फिर मैं मौन
पहचान कौन?
क्या नहीं पहचाना मैं तो हमेशा तुम्हारे साथ
तुम्हारे ही अंदर रहता हूँ
और कहता हूँ की कभी तो अंतर्मुखी हो
मुझसे भी करो मुलाकात
न सही लंबी चर्चा कुछ तो करो बात
कभी तो हो रूबरू अपने यथार्थ से
अंतर्मन का कृष्ण निवेदन ज्यूँ करता पार्थ से
उठाओ मनोबल करदो शंखनाद
और अन्तर्निहित भय का पूर्णतः करो विध्वंश
स्मरण रहे हो तुम ईश के अंश...............

28 March, 2010

जीगर मा बड़ी आग है ,तो बीडी जलालो भाई

जीगर मा बड़ी आग है ,तो बीडी जलालो भाई
किसी के खुशियों को क्यूँ जलाते हो
जख्म भी देते हो नासूर भी बनाते हो
और फिर बाद में मलहम भी लगाते हो
पर इस क्रम में कोई धैर्य खो देता है
किसी का अंतर्मन रो देता है
कोई मौन हो जाता है कोई गला फाड़ चिल्लाता है
याद रहे कभी हमारा भी वक्त आएगा
तब देखना है की तुम्हारे जख्मो पर कौन मलहम लगायेगा...........

25 March, 2010

Appreciating love as it is…

Love has a plethora of meaning attributed to it। It’s the driving force behind life. But why the essence of love is missing in our life can be related to the fact that we are constantly being taught to love others, love our neighbors ,friends, family and country but the missing link is the very fact that none of the teaching goes to propagate the idea that love yourself first. It’s important here that there is nothing like first love or last love but it’s a continuum of the seed that goes on transforming like a banyan tree. Love slowly graduates from conditional to unconditional and transcends to bliss. The entire cosmos is under the influence of this divine force. Love is what you relate to passionately it may be animate or inanimate but it’s not a relationship indeed.

http://www.youthkiawaaz.com/2010/03/appreciating-love-as-it-is/

Scientoonics: Communicating science through cartoons

Communicating science in the language of the masses has been a challenging endeavor for science communicators. It becomes difficult to conceptualize the complexity that is inherent in science down to a medium where the content makes an

http://www.youthkiawaaz.com/2010/03/scientoonics-communicating-science-through-cartoons/

24 March, 2010

बर्बादी के बिग बाजार में सब कुछ लिया है लुट ..........

बर्बादी के बिग बाजार में सब कुछ लिया है लुट
तुम कहते हो महा सेल है सबको मिलता
छुट छुट यहाँ मति भ्रम मात्र है कुछ नहीं मिलता
सस्ता बड़ा कठिन है शोध छात्र का टुटा फुटा रस्ता
जो चलता इस कठिन डगर पर सचमुच क्रांतिकारी
है शोध यहाँ शोषण पर्याय है जीने की लाचारी है

ये दिल मांगे मोर है

प्यार
इश्क
और मोहब्बत
इनमे से कोई नहीं
जवाब इनमे से कोई नहीं
मेरे बर्बादी का कारण जवाब कुछ और है
बर्बादी के दौर में ये दिल मांगे मोर है

गजोधर अगर रिसर्च में होते ..........

गजोधर अगर रिसर्च में होते , तो उनके बॉस होते राजू
और सोंचिये क्या होता जब दोनों बैठते आजू
बाजू गजोधर कहते सर हर पब्लिकेशन में आप मेरा नाम लेते
हो पर मुझे phd की डिग्री नहीं देते
हो राजू कहते बेटा डिग्री लेके क्या करोगे
एक और educated बेरोजगार बन के मरोगे
इस से अच्छा है मेरे प्रयोग जारी है
कोई न कहे मरने वाला गजोधर डिग्री धारी है ....................

21 March, 2010

If Life is Hell, Then All Izz Well…


Seeking Opportunities in Chaos


मैं एक शोध छात्र

कोल्हू का बैल , पिंजड़े में बंद तोता , या फिर मेढक कुछ भी बनाता
मुझको पर प्रयोगशाला में अपना वजूद समझ नहीं आता है
ये कैसा संगीत तू मुझसे बजवाता है जिसमे सुर है न ताल है
श्रोता और संगीतकार दोनों बहाल है
हाँथ में test tube और ये सफ़ेद apron
जैसे खुद के मौत पे मेरा पांच वर्ष का मौन
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24 February, 2010

मौत के आगोश में भी जिन्दगी से प्यार हो



तुम चुरा रहे नज़र मैं भी हूँ तुमसे अजनबी

की अंत तो होना ही है और सत्य तो यही राख है

मिट्टी में मिलने से बचने के बहाने लाख हैं

मुट्ठी में समेटना संसार मैं भी चाहता

सब कुछ समां जाए मुझी में आकर ऐसा चाहता

चाहता हूँ

जीत हो मेरी और जय जय कार हो

मौत के आगोश में भी जिन्दगी से प्यार हो

जो भी प्रश्न उठ रहे उत्तर उसके हज़ार हों ...........






14 February, 2010

कम ऑन मेरे मन
















हैप्पी valentienes डे


Gravitation is not responsible for people falling in love that’s what Einstein says. Whatever is the mechanism but it does happen to drive our purposeful living in the cosmos. My poetic expression:

The love that was always there, in the clouds and rain
In the birds chirruping, and down the country lane
In the hug of father and in tender touch of mom
That love was the one in which I enjoyed freedom
Then in youth a love different, I came across my life
She was one I gave my heart, and she became my wife
That is how the love has been empowering my being
But sudden change in word around a different love is seen
No matter what the shape it takes love has always been pure
On Saint Valentine’s Day I pray to god there be no hate any more

RANJEET KUMAR

11 February, 2010

मौनायम


एक शांत था एक शोर

एक शक्तिशाली एक कमजोर

मन के किसी कोने में था कोहराम

एक विचित्र खोज मौन आयाम

शोर और शान्ति से परे

ये आयाम मेरा जीवन से

प्रत्यक्ष साक्षात्कार है

मौन आयाम हर सृजन

के गर्भ में निहित चमत्कार है ............








30 January, 2010

गाँधी जी ...........

गाँधी जी
आपके आदर्श अब किताबों में हैं
कुछ सवालों में हैं कुछ जवाबों में हैं
हर एक दिल में आप हो या न हो
हर शहर में तो एक रोड है आपका
लगता फिर क्यूँ है बापू अनाथों का देश
मन में कुंठा भरा है क्यूँ पश्चाताप का.......................

11 January, 2010

मैंने हकीकत में ख्वाब देखा है


मैंने हकीकत में ख्वाब देखा है

कुछ सवालों का जवाब देखा है

यूँ अचानक ही कुछ हुआ जैसे

तपती रेत पे एक तालाब देखा है

प्यास मेरी मुझे चलाती है

तालाब कहीं रेत में खो जाती है

फिर भी मैं हारता नहीं , चलता

प्यास अब त्रास बन के था क्षलता

मृगतृष्णा थी मैं अचेतन था

घबराया हुआ मेरा मन था

ऐसा लगता था मैं मर जाऊँगा

उसी समय खुली आँखें मैं जागा

लगा मन को की मैं तो जिन्दा हूँ

प्यास गर हलक तक आजाये तो

बस एक तड़पता हुआ परिंदा हूँ

मौत के शहर के बीचोबीच

मैं एक मात्र जीवित वाशिंदा हूँ

10 January, 2010

laundiatic syndrome ...............


मेरे एक दोस्त को प्यार हो गया

वो भी laundiatic syndrome का शिकार हो गया

ये बीमारी अजीब होती है

लोग दोस्तों को भूल जाते हैं

झूठ नियति बन जाती है

लोग अपनों से जी चुरातें हैं

ये जीन सबके पास होता है

पर किसी में ही ख़ास होता है

जो समझता है दुनिया पागल है

और वो सबसे सयाना है

प्यार के नाम जो नौटंकी है

उसका किरदार बस निभाना है

सच अगर प्यार येही है तो

मुझे माफ़ करो

मेरे इश्वर अब तुम ही ये इन्साफ करो..............



प्रतिसाद (response) या प्रतिकर्म ( reaction )



प्रतिसाद (response) या प्रतिकर्म ( reaction )


हर मोड़ पर ये सवाल आता है


पर मन प्रतिकर्म ही करवाता है


प्रतिसाद हमेशा मन की उदंडता से कुचला जाता है


पर जब भी आजादी मिले तो उस अंतराल का अनुभव जरूरी है


जो भाव और विचार के बीच आता है


और अंततः कर्म में आकार पाता है


ये अंतराल का अनुभव वस्तुतः


मौन में डुबकी लगाने जैसा है


और अनंत के गहराई


से प्रतिसाद का मोती पाने जैसा है ...................



अमृत है विष भी है प्रारब्ध में मेरे ...........

mera होश काव्य है , आक्रोश काव्य है

और काव्य है मेरे मन के भाव आवेष

मेरे विचारों की कड़ी भी एक काव्य है

अंतर्नाद ह्रदय की भी काव्य का है रूप

मौन काव्य है और वही गूँज भी

अन्धकार भी कविता ,प्रकाश पुंज भी

अस्तित्व मेरी भी तो काव्य मात्र है

सृजन विनाश की एक अक्षय पात्र है

अमृत है विष भी है प्रारब्ध में मेरे

वही झलकता है हर शब्द में मेरे

मेरी हर एक कृति अभिव्यक्त भाव हैं

इश्वर के शब्दकोष का ही ये प्रभाव है

की भाव शब्द के परे सागर विशाल है

दुनिया तो बस फैली हुई एक मायाजाल है .................

































09 January, 2010

खोज में निकला मैं एक खोजी हूँ


युहीं फिर किसी

खोज में निकला मैं एक खोजी हूँ

लोग कहते हैं मैं ,पागल हूँ मनमौजी हूँ

मेरे कदम होते दिशा हीन हैं

पर कोई शक्ति है जो चलता है

सुगम हो जाते पथ जो कठिन हैं

मैं किसी विचार का मोहताज नहीं

मैं तो उसी शक्ति मात्र का भक्त हूँ

उसकी सानिध्य में मैं पूर्ण आशवस्त हूँ ......






07 January, 2010

पप्पू भैया प्यार में बन गए कोल्हू बैल ...................


ये प्यार नहीं बंधू

संक्रामक बीमारी है

और प्यार के नाम पर

इमोशनल अत्याचार जारी है

रोज नयी नौटंकी रोज नया खेल

पप्पू भैया प्यार में बन गए कोल्हू बैल

कोल्हू बैल की तरह

लगा रहे हैं चक्कर

मैं मूढ़ इंतज़ार कर रहा कब

आयेंगे वो थककर

पेड़ के छाओं में सांस जब लेंगे पप्पू भैया

कब समझेंगे बाबू साहेब प्यार की भूल भूलैया ..............

हर खेल उसी का रचा हुआ उसकी ही है करतूत .............


बीज के अस्तित्व के विलीन

होने से ही अंकुर आता है

पर क्या यह बात सोंच

बीज पछताता है

नहीं

पर हम घबराते हैं

और बेचैन हो जाते हैं

विनाश में सृजन के

छुपे सत्य की प्रसव वेदना

कहाँ समझ पाते हैं

और गर्भपात हो जाता है

जन्म से पहले ही

सुनहरा पल खो जाता है

आहट उस वर्तमान की

को कुचलो मत होने दो प्रस्तुत

हर खेल उसी का रचा हुआ उसकी ही है करतूत .............












06 January, 2010

एक रास्ता हमेशा दिल के लिए होता है


एक रास्ता हमेशा

दिल के लिए होता है

मन की उदंडता पर

अस्तित्व वो खोता है

जीवन के दौड़ में बस

मन की है मनमानी

दिल के लिए रस्ता जो

लगे है कालापानी

कारण जो है वो मन है

उसकी है चौकीदारी

मन खुद बीमार भी है

और स्वयं वो है बिमारी

आजाद दिल कहाँ अब

माने है मन का कहना

जो रास्ता अलग है

उस पे है चलते रहना

इरादे बुलंद हो तो

रस्ते कठिन नहीं हैं

मंजिल हो जब ये रस्ते

हर कदम तब सही हैं

हर एक कदम मेरी अब

उसकी तलाश में है

कहीं दूर नहीं है वो

मेरे ही पास में है .....................





05 January, 2010

तुमको क्या मिल गया की तुम बुद्ध हो गए


तुमको क्या मिल गया की तुम बुद्ध हो गए


क्या पा लिया था तुमने जो तुम शुद्ध हो गए


मुझको तलाश है उसी कल्पवृक्ष का


जिसकी छत्र छाया में तुम प्रबुद्ध हो गए


मैं ढूँढ रहा था उसी तरंग को


अनंत विधमान जो उसी आनंद को


चरणों का समर्पित अहंकार मेरा है


मेरे मलिन ह्रदय का तूं सवेरा है .................



मौन के उस गूँज का खोजी क्रन्तिकारी हूँ


मन के किसी कोने में

एहसास अनोखा है

दुनिया में जो दिखता है

भ्रम है वो धोखा है

सच्चाई कहाँ दिखती

और होती कहाँ आज़ादी

आवाज़ जो मतलब की

उसको कहाँ हवा दी

मन के किसी कोने में

दफ़न वजूद मेरा

एक रौशनी जो आए

मिट जाए ये अँधेरा

उस रौशनी का मैं

अकिंचन पुजारी हूँ

मौन के उस गूँज का

खोजी क्रन्तिकारी हूँ ..............................