30 July, 2014

गुरु के प्रतीक्षा में अकिंचन मैं प्रार्थी



















शिक्षा मिली पर विद्या से दूर रह गए
शेष कागज़ी प्रमाणों के गुरूर रह गए
दीवारों पर टंगी उपलब्धियां रही
हम मूढ़ थे, मूढ़ हैं और मूढ़ रह गए

आजीविका को जीने का प्रयाय मान के
शिक्षा को ज्ञान का अध्याय मान के
हम बस बढ़ाते रह गए निज अहंकार को
अंकुश न लगा पाये मिथ्या प्रचार को

शिक्षा मिला विद्या से परिचय नहीं हुआ
विजय अनेक हासिल,फिर भी जय नहीं हुआ 
अर्जुन को मिल गए थे जैसे पार्थसारथी
गुरु के प्रतीक्षा में अकिंचन मैं प्रार्थी।









20 July, 2014

कभी कारवां न बना पाया मैं















बस यही बात दिल ये समझाता रहा
धैर्य का पाठ मुझको पढ़ाता  रहा
मंज़िल की परिभाषा बदलती रही
भले हौसला लड़खड़ाता रहा

कदम भी अनायास बढ़ते रहे
कुछ आये करीब कुछ बिछड़ते रहे
कभी कारवां न बना पाया मैं
चाह मेरी थी कोरस में गाता  मगर
चंद पंक्ति अकेले गुनगुना पाया मैं

खेद मुझको नहीं ,पर असंतोष है
इसमें पाता नहीं मैं कोई दोष है
मैं तो पथिक हूँ , धर्म चलना मेरा
नहीं शोभा देता मचलना मेरा
पर गणना जो होगी खोने पाने की
तो खोया अधिक है ,क्या पाया हूँ मैं
चुल्लू भर पानी को खोजने   के लिए
माँ गंगा का तट छोड़ आया हूँ मैं.




11 July, 2014

ह्रदय के भाव कुण्ड में विचारों का ये हवन है















मैं हमेशा ढूंढ़ता सुकून दिल के कोने में
कुछ तो महत्वपूर्ण होता अकेले होने में
साँसों की गति पे अनायास ध्यान जाता है
होता प्रतीत ऐसे जैसे साथ में विधाता है

बाहर की कोलाहल नहीं फिर भेदती अंदर का मौन
इस अवस्था में जैसे ये प्रश्न न हो मैं हूँ कौन
शेष जो रहता है बस साँसों का आवागमन है
ह्रदय के भाव कुण्ड में विचारों का ये हवन है
















09 July, 2014

शिक्षक अनेक गुरु की कमी खलती है




शिक्षा सिमट गयी कागज़ी प्रमाणों में
उपाधि बिक रही खुले यहाँ दुकानो में
शिक्षक अनेक गुरु की कमी खलती है
ये असंतोष मेरे भी मन में पलती है

काश होता कोई जो बात ये बता देता
की जो ये दौड़ है इसका कोई क्या अंत भी है
ये पतझड़ जो जारी है लम्बे अरसे से
बाद इसके क्या कोई सुखद बसंत भी है

गुरु कहाँ है , कहाँ शिष्य , शिक्षा है किधर
जो इंसान बनाए वो परीक्षा है किधर
किधर है ज्ञान जो तमस का नाश करती है
कीचड़ में खिले कमल प्रयास करती है



06 July, 2014

कबीरा



 
अब भी प्रश्न तुम्हारे ऐसे टेढ़े मेढ़े होते हैं
जिसके उत्तर और प्रश्न के बीज़ नए बो देते हैं
मैं मूढ़ हल के चक्कर में डुबकी रोज़ लगता हूँ
फिर तुम कोई प्रश्न दे देते, उत्तर ढूंढ जो लाता हूँ
बिक्रम और बैताल के जैसे क्रम ये चलता रहता है
क्या कबीरा तुभी इसी क्रम को सच्चा जीवन कहता है
मैं भी हूँ बाज़ार में डटा हाँथ में लिए लुआठी
अहंकार फूकन मैं आया बस तू ही मेरा साथी
थोथा ज्ञान नहीं, परिचय मेरा मुझसे करवा दो
संभव हो तो स्वयं की भाँती कबीरा मुझे बना दो ........