30 June, 2013

गेहूं भी चाहिए ,चाहिए गुलाब भी

हम अपने गाँव को युहीं अचानक छोड़ आये हैं 
पाया है बहुत थोड़ा ज्यादा तो गवायें हैं 
न सौंधी खुशबू माटी की न खेतों की हरियाली  
अपना कौन है यहाँ जो हैं सभी पराये हैं 
सोंचा था न सपने में कभी दिन ऐसा आएगा 
ह्रदय के भाव पर मस्तिष्क आधिपत्य पायेगा  
गेहूं  भी चाहिए ,चाहिए गुलाब भी 
कुछ प्रश्न उलझे से उनके जवाब भी 
दिल और दिमाग दोनों के मतभेद से परे 
जीवंत हो सके कुछ ऐसे ख्वाब भी 

28 June, 2013

खानाबदोश







 
निकला था इस सुबह भी ज़ज्बा था ज़ोश था
मालूम हुआ की मैं तो खानाबदोश था
बस भाग रहा था मैं कोई तलाश में
उलझा हुआ था ऐसे किसी प्रयास में
सोंच रहा मैं था कोई तो लक्ष्य हो
जीवन का मानचित्र कभी तो प्रत्यक्ष हो
और सामने आजाये कोई रूपरेखा ढोस
मिलजाए आनंद का ऐसा कोई शब्दकोष
की जिसके सहारे वर्तमान लिखूं मैं
भूत - भविष्य से पृथक पहचान लिखूं मैं
लिखूं की पदचिन्हों पे नमंजूर चलना है
उसी रचयिता के सांचे में ढलना है  
अब उससे कम कोई बाकी नहीं इच्छा
जीवन ही प्रार्थना मेरी बस उसकी प्रतीक्षा .....

26 June, 2013

´सर्वे भवन्तु सुखिनः ´

देश अपना तो  सदियों से है अटल 
ये कैसी खलबली कैसा है कोलाहल 
हैं मुट्ठी भर वे लोग जो प्रमाणपत्र बांटते 
बनाते हमको हैं सेक्युलर या कम्युनल 

घृणा का मन्त्र मात्र सत्ता का पर्याय है 
जन जन में हो दुरी यही उपाय है 
चन्दन हो टोपी हो श्रद्धा मेरी अपनी 
इस बात पर क्यूँ फिर इतनी बेचैनी 

ये कौन सा भारत जिसका निर्माण हो रहा 
ढकेल के पतन पे गुणगान हो रहा 
चोरों के फ़ौज को करके इकठा 
सम्पूर्ण देश का अपमान हो रहा 

हिन्दू होना क्या कोई गुनाह है 
तुम्हारी क्या मनशा क्या तुम्हारी चाह है 
अलगाव का डफली बजाते रहो तुम 
प्रजातंत्र का खिल्ली उड़ाते रहो तुम 
´सर्वे भवन्तु सुखिनः ´ में हमारी अटूट आस्था 
भारत के उन्नति का है ये  मात्र रास्ता ..........

23 June, 2013

उत्तराखण्ड त्रासदी




तांडव प्रकृति का जो है घाव दे गया 
मानस पटल पे मेरे तनाव दे गया 
की शोक की सीमा क्या अपनों तक सीमित है  
अपने अस्तित्व से ही अलगाव दे गया 

बस आंकड़ो के क्रम में कुछ आज खोया है 
मन मेरा बार बार उध्वेलित हो रोया है 
क्या वक़्त आ गया है पुनः विचार हो 
अंकुश लगे न और आगे अत्याचार हो 
प्रकृति से खिलवाड़ है कौन जिम्मेदार 
कैसी व्यवस्था है ये है कौन सी सरकार 

सेना के लोग हैं जो जीवन बचा रहे 
नेता हवा में युहीं चक्कर लगा रहे 
कुछ दंभ में हैं चूर की हम है सेकुलर 
तू आम आदमी है गर मरता है तो मर 

संवेदना मेरी ये संकल्प बनेगी 
भारत निर्माण का विकल्प बनेगी 
सृजन पुनः विनाश के बेदी पे होना है 
नम आज ह्रदय का हर एक कोना  है .......


 


17 June, 2013


Friends I am sharing links to some of  my writeup across and beyond disciplines. Its my humble way to contribute to the society....



Science







 

Development


Environment


 

Entrepreneurship, Motivation, Leadership
















 

 

 

Society






 
Democracy, Politics






 

Education







 

Career
http://www.merinews.com/article/science-journalism-a-passion-driven-field/15822464.shtml

11 June, 2013

विष्णु के भांति सर्प सैया पर लेटा मैं ..............


 मुझे नहीं गम है की मैं क्यूँ ऐसा हूँ
 खोटा सिक्का हूँ या चिल्लर पैसा हूँ
  लोग कहे मैं हूँ अनाथ अभागा भी
चरखे पे का सूत और कच्चा धागा भी
दलित हूँ या फिर गली का कोई दबंग हूँ
शव यात्रा का मौन या फिर कोई हुड़दंग हूँ
जो भी हूँ पर एक बात तो पक्की है
हूँ वही इश का अंश जो सब में विधमान है
साँसों का स्पंदन इसका शाश्वत प्रमाण है
भारत के भूमि पर जन्मा उसका ही बेटा मैं
विष्णु के भांति सर्प  सैया  पर लेटा मैं

 

चाणक्य को है जिसकी तलाश वो चंद्रगुप्त हूँ .............


 
गेहूँ और गुलाब दोनों ही प्यारी है
गेहूँ के लिए जंग अभी लाचारी है
हैं दोनों ही महत्वपूर्ण जीवन के लिए
तब भी  भूख सुंदरता पर भारी है
युद्ध जीत और हार के लिए होता है
और मिले अधिकार के लिए होता है
परिवर्तन का मार्ग मात्र क्रान्ति में है
बीज़ शोर की छिपी घोर शान्ति में है
उसी मौन क्रान्ति का मैं सिपाही हूँ
नूतन इतिहास रचे वैसी मैं स्याही हूँ
तपिश पेट की ह्रदय को जब जला रही हो
और चोरों की फौज़ देश को चला रही हो
ऐसे में जो खून किसी का न खौले
आवाज़ करे न कोई ,न कोई मुख खोले
फटेगी ज्वालामुखी फिर एक दिन जरूर
टूटेगा सताधारी का लंबा गुरूर
इन्कलाब का वही जवालामुखी सुसुप्त हूँ
चाणक्य को है जिसकी तलाश वो चंद्रगुप्त हूँ

 

Finland trip........