क्रोध में जो शब्द हों , उनपर भला अंकुश कहाँ
हम तो मात्र हैं सही , दुश्मन लगे सारा जहाँ
माता पिता परिवार घर सब कटघरे में हैं खड़े
मन कलुषित हो गया ,फिर कौन रंग उस पर चढ़े
आवेश में प्रतिसाद (रिस्पांस) पर प्रतिकर्म (रिएक्शन) हावी होती है
ऐसे ही वातावरण में बातें तनावी होती हैं
सच कहीं कोने में खड़ा एक द्रष्टा होता है
इंसान अपने कर कमल से घृणा के बीज़ बोता है।