18 April, 2009

सामूहिक निषेध



जब गिरती है कोई गगन चुम्बी इमारत

तब साथ गिरते हैं आस पास के मकान भी

और धुल चाटती है ऐसे में ईमानदारी की झोपड़ी

इसे सामूहिक निषेध कहते हैं

इसी collateral डैमेज से मैंने ख़ुद को बचाया

जब त्यागा मैंने इनका छत्रछाया

ये अंहकार की इमारतों में बसे हुए

हिन् भावना के शिकार लोगों का अंत अवश्यम्भावी था

क्यूंकि ऊँचे होने का दंभ इनपे हावी था

भगवन इन तेजी से बदलती परिस्थितियों में तेरा ही सहारा है

मुझे तो सच्चाई के बुनियाद पे टिका अपना झोपड़ी ही प्यारा है......



No comments:

Post a Comment