भेद तो उसने भी न किया
जिसने हम सब को बनाया
शाषन शोषण संबिधान
हमने क्या खोया पाया
बाज़ार बन गयी हुकूमत ,
गिरवी हुआ ईमान
शिक्षा स्वास्थ अधिकार जो मौलिक ,
सब कुछ खुली दुकान
सब कुछ खुली दुकान
चोर ही पहरेदार है
लंबी अमावस को पूर्णिमा का इंतज़ार है
हार व्यवस्था से जो गए हैं
उनकी अलग कहानी है
जात पात के नाम आरक्षण
बौद्धिक बेईमानी है