09 November, 2010

अनपढ़ जीवन की मायावी गाथा

कोई लूट गया मेरा बचपन
और ले गया मेरा पतंग
कैद हुआ चारदीवारी में
शुरू स्कूली आतंक
रंगीन दुनिया थी अपनी
अब रह गयी स्वेत श्याम
छड़ी तमाचे गाली से जीना हुआ हराम
मास्टर जी के तिरस्कार ने
विद्रोही था बनाया
हमने भी नकामयाब
आंदोलन कई चलाया
नहीं हुआ कुछ परिवर्तन
मैं होता रह गया फेल
पता नहीं कब व्यस्क हुआ
शुरू कब जीवन का हुआ खेल
शिक्षा के इस मायाजाल में
सबकुछ जब गया लूट
चन्दन और राख लपेटे बना बाबा अबधूत
पाखंडी इस रूप में धन भी आया अकूत
मास्टर भी अब आके मेरे मठ पर टेके माथा
ये है मेरे अनपढ़ जीवन की मायावी गाथा .

08 November, 2010

बददिमाग कवि







आज फिर जीने की तमन्ना है
और मरने का इरादा भी
क्या विरोधाभास है
पर मेरे लिए एक सुखद एहसास
क्यूंकि मरने का इरादा रखना उतना ही
सच है जितना जीने की जिजीविषा
ये एक आध्यात्मिक तथ्य है
जन्म और मृत्यु के बीच का अंतराल
जीवन का गुढ़ सत्य है
मैं भी उसी अंतराल का अदना अनुभवी हूँ
लोग कहते हैं मैं एक बददिमाग कवि हूँ..........

Apna time aayega