मेरी राह जो मेरी अपनी अकेली
बताओ की क्या तुम मेरा साथ दोगी
जो काँटों पर चलना है मंज़ूर तुमको
बतादूँ ये रस्ते में तकलीफ होगी
बताओ की क्या तुम मेरा साथ दोगी
जो काँटों पर चलना है मंज़ूर तुमको
बतादूँ ये रस्ते में तकलीफ होगी
कदम ही नहीं जब बढ़ाये है हमने
तो कैसे बतादूँ मैं मंजिल कहाँ है
राही का बस काम चलते है रहना
उसकी हर पहल एक खुला आसमान है
जो मन में तुम्हारे है संदेह तो फिर
कदम न बढ़ाना, ये बईमानी होगी
लेखक स्वयं जब कलम छोड़ दे तो
घुटन से भरी वो कहानी ही होगी
चलो मेरे संग ऐसी मेरी थी मंशा
मैं हूँ एक पथिक हमकदम चाहता हूँ
मिलाके कदम जो चले साथ मेरे
कोई मित्र ऐसा परम चाहता हूँ .