27 February, 2011

दिल के कोने में


कहीं भी नहीं सुकून
है जो दिल के कोने में
चीर कर अंकुरित हो धरती का सीना जो
धन्य है जीवन वैसा बीज़ होने में
पथराई आँखें देख लें मंजिल करीब है
परवाह नहीं फिर से थक के चूर होने में
बस एक बात दिल के सबसे करीब जो
होती है वेदना उससे दूर होने में
जब उड़ने को उत्साहित वजूद मेरा है
नहीं ईक्षा मेरी कोई व्यर्थ बोझ ढोने में
भाव से भरी मेरे आँखों की क्रान्ति
चाहे है आज साथ दूँ उनका मैं रोने में ...............

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