20 May, 2011

मौन पथिक



आरम्भ मुझे करना था कहीं


मैंने खुद को दिया एक लक्ष्य


जो राह धुंध से ढके हुए


वो होने लगे प्रत्यक्ष


मैं तो बस चलता जाता था


आदि की सूझ न अंत का ज्ञान


कुछ राही हुए परिचित मुझसे


कुछ से मैं रहा युहीं अनजान


पर ऐसा लगा जैसे कोई था


जो चलता था मेरे संग


जो उर्जा मेरे अंदर थी


जो जोश था और उमंग


सब का श्रोत प्रत्यक्ष नहीं


पर अनुभव अनंत होते हैं सदा


उस मौन पथिक की मन में


उस शक्ति को दंडवत मेरा


जो साथ हर पल हर क्षण में ...............
























No comments:

Post a Comment

Engineering enlightenment