आरम्भ मुझे करना था कहीं
मैंने खुद को दिया एक लक्ष्य
जो राह धुंध से ढके हुए
वो होने लगे प्रत्यक्ष
मैं तो बस चलता जाता था
आदि की सूझ न अंत का ज्ञान
कुछ राही हुए परिचित मुझसे
कुछ से मैं रहा युहीं अनजान
पर ऐसा लगा जैसे कोई था
जो चलता था मेरे संग
जो उर्जा मेरे अंदर थी
जो जोश था और उमंग
सब का श्रोत प्रत्यक्ष नहीं
पर अनुभव अनंत होते हैं सदा
उस मौन पथिक की मन में
उस शक्ति को दंडवत मेरा
जो साथ हर पल हर क्षण में ...............
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