रिश्ते हैं नाजुक धागे से प्रेम का हैं ये बंधन
शोभता है उन्नत ललाट पर लगा हुआ ही चन्दन
शिकन ललाट न आने देना, न करना दिल छोटा
संभव है जो सुबह था भुला, शाम है घर को लौटा
न्याय नहीं होगा रिश्तों पर, तर्क का बोझ जो डाला
मन के मनमानी से ज्यादा ह्रदय ने उसे सम्हाला
फूल करे माली से बगावत होगा क्या उपवन का
अपनों का ही साथ न हो तो मोल क्या है जीवन का
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