रोटी के बहाने घर बार से अलग
माता पिता के स्नेह और प्यार से अलग
गाँव का कुआँ छोड़, मन की मिटाने प्यास
कोंक्रिट के जंगल में भविष्य की तलाश
जीवन का लक्ष्य क्या है
दो वक़्त की रोटी
या कुछ और मायने हैं
अस्तित्व के अपने
मैंने खुले आँखों से
देखे कई सपने
उन सपनो में निहित भाव , मात्र एक था
बुद्धि के सामने नतमस्तक विवेक था
(फोटो : शान्तिकुंज हरिद्धार यात्रा )