सफलता जब मिली तो दर्पण दिखा गयी
यौवन भी दिखाया और बचपन दिखा गयी
जीवन का वृत्तचित्र था आँखों के सामने
आना पड़ेगा माँ तुम्हे मेरा हाँथ थामने
पाने की चाह में खोते चले गए
दूरी की बीज़ मन में बोते चले गए
दौड़ते रहे अंतहीन रेस है
गांव क़स्बा शहर देश और प्रदेश है
मिटटी के घर से संगेमरमर के मकान तक
बस दौड़ते रहे अंतिम साँस प्राण तक
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