24 February, 2010

मौत के आगोश में भी जिन्दगी से प्यार हो



तुम चुरा रहे नज़र मैं भी हूँ तुमसे अजनबी

की अंत तो होना ही है और सत्य तो यही राख है

मिट्टी में मिलने से बचने के बहाने लाख हैं

मुट्ठी में समेटना संसार मैं भी चाहता

सब कुछ समां जाए मुझी में आकर ऐसा चाहता

चाहता हूँ

जीत हो मेरी और जय जय कार हो

मौत के आगोश में भी जिन्दगी से प्यार हो

जो भी प्रश्न उठ रहे उत्तर उसके हज़ार हों ...........






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