कोई आए आके मेरा अब तो नब्ज़ देखले
जो ह्रदय के घाव है मन का कब्ज देखले
आँखें तो चाहती हैं रोना आज निरंतर
नेताओं के बेशर्मी बाग सब्ज देख लें
सरकार हो तुम हम भी तो हैं आम आदमी
किस मिट्टी के बने हो हैं न आँखों में नमी
इतना न झुकाओ की टूट जाए ये कमर
फूलों का गला घोटता नहीं कहीं भ्रमर
एक अन्ना ने जो किया स्मरण वो रहे
हमारे भी धमनियों में वही रक्त बह रहे
सोंचो अगर आ जाएँ हजारों में हजारे
लंगोटी सम्हाल कैसे भाग पाओगे प्यारे
घमंड तो रावण का भी चूर हुआ था
हनुमान अकेले से मजबूर हुआ था
भूलना नहीं हमार जामवंत हैं अन्ना
आये है हम बदलने इतिहास का पन्ना .
27 July, 2011
20 May, 2011
मौन पथिक
आरम्भ मुझे करना था कहीं
मैंने खुद को दिया एक लक्ष्य
जो राह धुंध से ढके हुए
वो होने लगे प्रत्यक्ष
मैं तो बस चलता जाता था
आदि की सूझ न अंत का ज्ञान
कुछ राही हुए परिचित मुझसे
कुछ से मैं रहा युहीं अनजान
पर ऐसा लगा जैसे कोई था
जो चलता था मेरे संग
जो उर्जा मेरे अंदर थी
जो जोश था और उमंग
सब का श्रोत प्रत्यक्ष नहीं
पर अनुभव अनंत होते हैं सदा
उस मौन पथिक की मन में
उस शक्ति को दंडवत मेरा
जो साथ हर पल हर क्षण में ...............
27 February, 2011
मैं हूँ एक पथिक हमकदम चाहता हूँ
मेरी राह जो मेरी अपनी अकेली
बताओ की क्या तुम मेरा साथ दोगी
जो काँटों पर चलना है मंज़ूर तुमको
बतादूँ ये रस्ते में तकलीफ होगी
बताओ की क्या तुम मेरा साथ दोगी
जो काँटों पर चलना है मंज़ूर तुमको
बतादूँ ये रस्ते में तकलीफ होगी
कदम ही नहीं जब बढ़ाये है हमने
तो कैसे बतादूँ मैं मंजिल कहाँ है
राही का बस काम चलते है रहना
उसकी हर पहल एक खुला आसमान है
जो मन में तुम्हारे है संदेह तो फिर
कदम न बढ़ाना, ये बईमानी होगी
लेखक स्वयं जब कलम छोड़ दे तो
घुटन से भरी वो कहानी ही होगी
चलो मेरे संग ऐसी मेरी थी मंशा
मैं हूँ एक पथिक हमकदम चाहता हूँ
मिलाके कदम जो चले साथ मेरे
कोई मित्र ऐसा परम चाहता हूँ .
दिल के कोने में
कहीं भी नहीं सुकून
है जो दिल के कोने में
चीर कर अंकुरित हो धरती का सीना जो
धन्य है जीवन वैसा बीज़ होने में
पथराई आँखें देख लें मंजिल करीब है
परवाह नहीं फिर से थक के चूर होने में
बस एक बात दिल के सबसे करीब जो
होती है वेदना उससे दूर होने में
जब उड़ने को उत्साहित वजूद मेरा है
नहीं ईक्षा मेरी कोई व्यर्थ बोझ ढोने में
भाव से भरी मेरे आँखों की क्रान्ति
चाहे है आज साथ दूँ उनका मैं रोने में ...............
है जो दिल के कोने में
चीर कर अंकुरित हो धरती का सीना जो
धन्य है जीवन वैसा बीज़ होने में
पथराई आँखें देख लें मंजिल करीब है
परवाह नहीं फिर से थक के चूर होने में
बस एक बात दिल के सबसे करीब जो
होती है वेदना उससे दूर होने में
जब उड़ने को उत्साहित वजूद मेरा है
नहीं ईक्षा मेरी कोई व्यर्थ बोझ ढोने में
भाव से भरी मेरे आँखों की क्रान्ति
चाहे है आज साथ दूँ उनका मैं रोने में ...............
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