कुछ खास नहीं कहने को है
फिर भी मन में बेचैनी है
जो दीप शिखर पर है जलती
उस पर निगाह मेरी पैनी है
संघर्ष तिमिर से नहीं मेरी
मैं तो हूँ भोर का उजियाला
मैं अदृश्य सूत्र अकिंचन हूँ
जिसमे गुथी है जीवन माला
मैं राह भी हूँ और राही भी
मैं कागज़ कलम और स्याही भी
मैं कविता भी और कवि भी हूँ
मैं उस ईश्वर की छवि ही हूँ
सृजन भी मैं विनाश भी हूँ
धरती भी मैं आकाश भी हूँ
जो बीज़ से उत्पन्न हो जंगल
उस बीज़ का दृढ विश्वास भी हूँ
मैं तांडव हूँ मैं रास भी हूँ
मैं वृन्दावन कैलाश भी हूँ
सागर भी मिटा न सके जिसे
अभिव्यक्ति की वो प्यास भी हूँ............