10 January, 2012

कुछ खास नहीं कहने को है

कुछ खास नहीं कहने को है

फिर भी मन में बेचैनी है

जो दीप शिखर पर है जलती

उस पर निगाह मेरी पैनी है

संघर्ष तिमिर से नहीं मेरी

मैं तो हूँ भोर का उजियाला

मैं अदृश्य सूत्र अकिंचन हूँ

जिसमे गुथी है जीवन माला

मैं राह भी हूँ और राही भी

मैं कागज़ कलम और स्याही भी

मैं कविता भी और कवि भी हूँ

मैं उस ईश्वर की छवि ही हूँ

सृजन भी मैं विनाश भी हूँ

धरती भी मैं आकाश भी हूँ

जो बीज़ से उत्पन्न हो जंगल

उस बीज़ का दृढ विश्वास भी हूँ

मैं तांडव हूँ मैं रास भी हूँ

मैं वृन्दावन कैलाश भी हूँ

सागर भी मिटा न सके जिसे

अभिव्यक्ति की वो प्यास भी हूँ............

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