10 January, 2012

जो परिवर्तन का नीव रखे वैसा मैं क्रांतिकारी हू


हर बीज़ के मर मिटने का सवब

अंकुर की गाथा होती है

एक अरण्य की उज्जवल भविष्य

उस तुच्छ बीज़ में सोती है

जब मौन शब्द पा जाता है

और भावों को मिलती है उड़ान

जब कोयले की कालिख परे

हो प्रकट हीरों की खान

जब अंदर की संगीत नाद

हर ले बाहर का कोलाहल

जब वर्तमान की बेदी पर

सूरज की रौशनी पड़े प्रबल

मैं उस सूरज की सत्ता का एक मात्र पुजारी हूँ

जो परिवर्तन का नीव रखे वैसा मैं क्रांतिकारी हूँ

No comments:

Post a Comment