एक समय था जब चेहरे पे मेरे
मुस्कान हमेशा रहता था
जो भी दिल में थे भाव मेरे
खुलकर सबसे मैं कहता था
थी चिंता नहीं न दायित्व कोई
मैं अपने मन का स्वामी था
आज़ाद था मैं, भय था न कोई
मंज़ूर नहीं गुलामी था
पर नियति का यह खेल अज़ब
हँसने का बहाना ढूंढता हूँ
जहाँ मिले इस दिल को सुकून
बस वही ठिकाना ढूँढता हूँ
मैं ढूँढता हूँ अब बस उसको
जो जवाब हर प्रश्न का है
हार और जीत से परे जहाँ
उत्सव जीवन के जश्न का है