12 September, 2013

जीवन का जश्न














एक समय था जब चेहरे पे मेरे
मुस्कान हमेशा रहता था
जो भी दिल में थे भाव मेरे
खुलकर सबसे मैं कहता था
थी चिंता नहीं न दायित्व कोई
मैं अपने मन का स्वामी था
आज़ाद था मैं, भय था न कोई
मंज़ूर नहीं गुलामी था

पर नियति का यह खेल अज़ब
हँसने का बहाना ढूंढता हूँ
जहाँ मिले इस दिल को सुकून
बस वही  ठिकाना ढूँढता हूँ
मैं ढूँढता हूँ अब बस उसको
जो जवाब हर प्रश्न का है
हार और जीत से परे जहाँ
उत्सव जीवन के जश्न का है






 

No comments:

Post a Comment

Engineering enlightenment