अब तो शब्दों के जंगल से
कोई विचार प्रबल हो
जो भी धर्म के नाम है होता
पर्दाफाश वो छल हो
मुझे नहीं है ज्ञात
झूठ है या सच है जो भी है
कौन यहाँ कितना दानी
और कौन महा लोभी है
माध्यम नहीं चाहिए मुझको
ईश्वर जब सबके अंदर
मेरे धर्म का मर्म मात्र
गाँधी के विवेकी बंदर
वो बंदर ही गुरु मेरे हैं
जो मैं अभी जिन्दा हूँ
सॅटॅलाइट के गुरु घंटालों
से नतमस्तक शर्मिंदा हूँ
जाके कहदो हार से अब की हार न मानूंगा मैं
थोथी धर्म, पाखण्ड का अब अत्याचार न मानूंगा मैं
मुझे नहीं मंज़ूर करे ईश्वर की दलाली कोई
मुखरित होने लगा मेरा है अंतर्मन विद्रोही
कोई विचार प्रबल हो
जो भी धर्म के नाम है होता
पर्दाफाश वो छल हो
मुझे नहीं है ज्ञात
झूठ है या सच है जो भी है
कौन यहाँ कितना दानी
और कौन महा लोभी है
माध्यम नहीं चाहिए मुझको
ईश्वर जब सबके अंदर
मेरे धर्म का मर्म मात्र
गाँधी के विवेकी बंदर
वो बंदर ही गुरु मेरे हैं
जो मैं अभी जिन्दा हूँ
सॅटॅलाइट के गुरु घंटालों
से नतमस्तक शर्मिंदा हूँ
जाके कहदो हार से अब की हार न मानूंगा मैं
थोथी धर्म, पाखण्ड का अब अत्याचार न मानूंगा मैं
मुझे नहीं मंज़ूर करे ईश्वर की दलाली कोई
मुखरित होने लगा मेरा है अंतर्मन विद्रोही
मेरा कार्य नहीं चंदन को गंदी नाली में बहाना
बस अपना दीपक आप ही बनकर जग रौशन कर जाना
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