10 September, 2015

मिलता नहीं कन्धा कोई आंसू बहाने को

क्या युद्ध ही  बस एक अंतिम प्रयाय था
या उससे परे  अन्य  भी  कोई उपाय था 

संवाद कृष्ण का दुर्योधन से भी हुआ 
और बोल गया वो कलयुग के सत्य को 
की जानता हूँ मैं मर्म धर्म का 
अंतर्मन मेरा अनुसरण को तैयार नहीं है 
अधर्म ज्ञात है मुझे पर क्या करूँ प्रभु 
उससे निवृत होने का विचार नहीं है 
और आप मधुसूदन मेरे ह्रदय में हैं 
करता वही मैं हूँ , जो मुझसे कराते आप 
अब आप ही जानो क्या पुण्य क्या है पाप  

हम आज भी कह देते हैं की ज्ञान मत दो यार 
अपना कोई जब आता है रास्ता दिखाने को 
अहंकार से भरे बस संवाद होते हैं 
फिर मिलता नहीं कन्धा कोई आंसू बहाने को 


पांडव गीता/प्रपन्न गीता के श्लोक से प्रेरित 



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