क्या युद्ध ही बस एक अंतिम प्रयाय था
या उससे परे अन्य भी कोई उपाय था
संवाद कृष्ण का दुर्योधन से भी हुआ
और बोल गया वो कलयुग के सत्य को
की जानता हूँ मैं मर्म धर्म का
अंतर्मन मेरा अनुसरण को तैयार नहीं है
अधर्म ज्ञात है मुझे पर क्या करूँ प्रभु
उससे निवृत होने का विचार नहीं है
और आप मधुसूदन मेरे ह्रदय में हैं
करता वही मैं हूँ , जो मुझसे कराते आप
अब आप ही जानो क्या पुण्य क्या है पाप
हम आज भी कह देते हैं की ज्ञान मत दो यार
अपना कोई जब आता है रास्ता दिखाने को
अहंकार से भरे बस संवाद होते हैं
फिर मिलता नहीं कन्धा कोई आंसू बहाने को
पांडव गीता/प्रपन्न गीता के श्लोक से प्रेरित
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