19 November, 2009

अंधे को मिली आँखों हो तो मांगे और क्या


अंधे को मिली आँखों हो

तो मांगे और क्या

देख रहा जग को जब

जो लगती थी मिथ्या

जो आंसू बह रहे थे

वे खुशी के थे प्रमाण

जो रंग थे जीवन के

था जो अनंत आसमान

पुलकित था रोम रोम

धन्यवाद देता मन

प्रभु देख रहा था मैं पर दृष्टी नहीं थी

विछुब्ध मन में मेरी ये श्रृष्टि नहीं थी

अब दृश्य और द्रष्टा कहाँ हैं ये पृथक

अब तेरी ही सत्ता का एहसास हर झलक ................

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