अंधे को मिली आँखों हो 
तो मांगे और क्या
देख रहा जग को जब 
जो लगती थी मिथ्या 
जो आंसू बह रहे थे 
वे खुशी के थे प्रमाण 
जो रंग थे जीवन के 
था जो अनंत आसमान 
पुलकित था रोम रोम 
धन्यवाद देता मन 
प्रभु देख रहा था मैं पर दृष्टी नहीं थी 
विछुब्ध मन में मेरी ये श्रृष्टि नहीं थी 
अब दृश्य और द्रष्टा कहाँ हैं ये पृथक 
अब तेरी ही सत्ता का एहसास हर  झलक ................
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