19 November, 2009

वो शब्द मेरे थे पर बोलता था कौन


कल मैं अकेले था

तो हंसती थी ये दुनिया

आज वो अकेलापन

buddhism हो गया

जो रौशनी मेरे

मन को छु गई

उसके लिए मैं

सुंदर एक प्रिज्म हो गया

दुनिया जिसे मेरी उपदेश मानती

वो शब्द मेरे थे पर बोलता था कौन

मैं तो उसी आवाज की परछाईं मात्र हूँ

जीवन के पाठशाला का मामूली छात्र हूँ
मैं प्रेम बाँटता बिखेरता आनंद
मैं उसी अमृत धारा का एक अक्षय पात्र हूँ...............


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