13 December, 2009

कदम तो मरे ही हैं चला रहा है कोई ............


रोया तो मैं बहुत था

जब गिरा था डगमगा के

पर क्या पता आगे कोई

मिलेगा मुस्कुरा के

खुदको सम्हाल के

बस था दो कदम बढ़ाया

तपती धुप में जैसे

मिलगया हो छाया

आशा की किरण फिर से

आंखों में जगमगाई

और खो गया कहीं वो

कर हौसला अफ़जाई

उस मुस्कुराहाट का

मैं सदैव हूँ आभारी

और उस समय से मैंने

चलना रखा है जारी

गिरता हूँ सम्हालता हूँ

उठ फिर से मैं चलता हूँ

की कदम तो मरे ही हैं

चला रहा है कोई

आंखों को लगता आगे

मुस्कुरा रहा है कोई

उसकी हँसी का मैं हूँ

उदाहरण अलबेला

आनंद की बारिश

मैं भीगता अकेला ..................














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