31 December, 2009

फिर एक बार चला कलम रे कागज़ कोरे पर ...........

फिर एक बार
चला कलम रे कागज़ कोरे पर
और जो दिल ढोये था बोझ
मन के बोरे पर
गिरा वो ऐसे सर से
मिल गयी दिल को वो आनंद
आज मोरा थिरके कदम हो के मगन स्वछंद
और कहूँ का दोस्त
बहुत कुछ कहते मेरे कदम
नशा जो जीने में है
न दे विस्की और न रम
हमरा बात मानो तुम
त्यागो ये अहंकार का बोझ
तभी कहीं हो पायेगी अंदर के वो खोज .................

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