22 April, 2014

विनिवेश

















दो कदम आगे बढ़ाया
तीन पीछे खींच ली 
झूठ का चश्मा लगाए 
आँखे सच से मीच ली 
मन को भी समझा दिया
शामिल हूँ मैं भी रेस  में
विश्व के बाज़ार में
अपने ही विनिवेश में

लगेंगी बोलियाँ मेरे
कागज़ी उपलब्धि पर
पोषित हो अहंकार
बैठेगा व्यास गद्दी पर
और फिर वही उपदेश
एवं  योजना भविष्य की
और समझाना की ये
जरूरत है इस परिदृश्य की
इस तरह  कहीं कोई
स्वर मौन फिर है हो गया
मुखोटों के
आडम्बर में
असली चेहरा खो गया।















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