06 July, 2014

कबीरा



 
अब भी प्रश्न तुम्हारे ऐसे टेढ़े मेढ़े होते हैं
जिसके उत्तर और प्रश्न के बीज़ नए बो देते हैं
मैं मूढ़ हल के चक्कर में डुबकी रोज़ लगता हूँ
फिर तुम कोई प्रश्न दे देते, उत्तर ढूंढ जो लाता हूँ
बिक्रम और बैताल के जैसे क्रम ये चलता रहता है
क्या कबीरा तुभी इसी क्रम को सच्चा जीवन कहता है
मैं भी हूँ बाज़ार में डटा हाँथ में लिए लुआठी
अहंकार फूकन मैं आया बस तू ही मेरा साथी
थोथा ज्ञान नहीं, परिचय मेरा मुझसे करवा दो
संभव हो तो स्वयं की भाँती कबीरा मुझे बना दो ........
 



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