अब भी प्रश्न तुम्हारे ऐसे टेढ़े
मेढ़े होते हैं
जिसके उत्तर और प्रश्न के
बीज़ नए बो देते हैं
मैं मूढ़ हल के चक्कर में डुबकी
रोज़ लगता हूँ
फिर तुम कोई प्रश्न दे देते,
उत्तर ढूंढ जो लाता हूँ
बिक्रम और बैताल के जैसे
क्रम ये चलता रहता है
क्या कबीरा तुभी इसी क्रम
को सच्चा जीवन कहता है
मैं भी हूँ बाज़ार में डटा
हाँथ में लिए लुआठी
अहंकार फूकन मैं आया बस तू
ही मेरा साथी
थोथा ज्ञान नहीं, परिचय मेरा
मुझसे करवा दो
संभव हो तो स्वयं की भाँती
कबीरा मुझे बना दो ........
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