30 July, 2014

गुरु के प्रतीक्षा में अकिंचन मैं प्रार्थी



















शिक्षा मिली पर विद्या से दूर रह गए
शेष कागज़ी प्रमाणों के गुरूर रह गए
दीवारों पर टंगी उपलब्धियां रही
हम मूढ़ थे, मूढ़ हैं और मूढ़ रह गए

आजीविका को जीने का प्रयाय मान के
शिक्षा को ज्ञान का अध्याय मान के
हम बस बढ़ाते रह गए निज अहंकार को
अंकुश न लगा पाये मिथ्या प्रचार को

शिक्षा मिला विद्या से परिचय नहीं हुआ
विजय अनेक हासिल,फिर भी जय नहीं हुआ 
अर्जुन को मिल गए थे जैसे पार्थसारथी
गुरु के प्रतीक्षा में अकिंचन मैं प्रार्थी।









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