शिक्षा सिमट गयी कागज़ी प्रमाणों में
उपाधि बिक रही खुले यहाँ दुकानो में
शिक्षक अनेक गुरु की कमी खलती है
ये असंतोष मेरे भी मन में पलती है
काश होता कोई जो बात ये बता देता
की जो ये दौड़ है इसका कोई क्या अंत भी है
ये पतझड़ जो जारी है लम्बे अरसे से
बाद इसके क्या कोई सुखद बसंत भी है
गुरु कहाँ है , कहाँ शिष्य , शिक्षा है किधर
जो इंसान बनाए वो परीक्षा है किधर
किधर है ज्ञान जो तमस का नाश करती है
कीचड़ में खिले कमल प्रयास करती है
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