Ranjeet K Mishra
Abhivyakti (Expressions)
01 March, 2015
मुखौटा
अंदर के बगावत पर बुद्धि का लगा पहरा
और खो गया फिर से , असली था जो चेहरा
रावण के तो दस सिर थे, मेरे तो हज़ारों हैं
दीवारों के नहीं हैं कान,कानो में दीवारें हैं
खुद को ही तो हमने, जंजीरों में जकड़ा है
जिसको देखो वो ही अहंकार में आंकड़ा है
ये जो मुखौटे हैं इन्हे आज उतरने दो
इस बार विधाता को वो चेहरा गढ़ने दो
फिर पाओगे एक हैं सब ,नहीं कोई अलग है भाई
कण कण उसकी ही छवि, उसकी ही है परछाईं .
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