10 September, 2009

आकाश में पदचिन्ह .........

आकाश में पदचिन्ह

कहाँ छोड़ती है पंछी

और कहाँ होती कोई

मोड़ और चौराहे

उड़ता हूँ उन्मुक्त उसी

गगन में मैं भी

स्वीकार करता सब कुछ

बाँहों को मैं फैलाये

मेरा भी कोई रस्ता

जाना पहचाना है

आकाश के परे आकाश को पाना है ...................




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