28 September, 2009

आवाज़ मेरे अंदर की कहीं शोर न बने



आवाज़ मेरे अंदर की कहीं शोर न बने
दृढ है जो मनोबल वो कमजोर न बने
आकाश में होती टिकी नज़रें जो मेरी हैं
देखना प्रभु कहीं तेरी हीं चितचोर न बने
मालूम है मंदिर में नहीं
मस्जीद में नहीं हो
तुम प्रेम के एहसास में
पर हठ जिद्द में नहीं हो 
चन्दन में नहीं हो तुम मुंडन में नहीं हो  
हर बात के हामी में खंडन में नहीं हो
तुम हो ते हो  सहज में और सरल में
तुम ही तो होते हो कर्मों के हर फल में
तुम आँखों में बसते हो रहते हो हर जगह
लड़ते हैं ये पुतले फिर यूँ हीं बे वजह
आना तुम्हारा जीवन में   बसंत की तरह
प्रारंभ  नयी हो जहाँ वो अंत की तरह
जीवन बना  दो मेरी समदर्शी हो जाऊं 
सराबोर आनंद से मैं  संत की तरह ..........          

1 comment:

  1. दशहरा विजयत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामना

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