09 September, 2009

अन्धकार से लड़ना नहीं

अन्धकार से लड़ना नहीं
एक दीप जलना है
मन के आँगन में जो कैक्टस पनप गए हैं
वहां पे जाके आज तुलसी को लगाना है
जो दौड़ है ये अँधा और छोर नहीं कोई
काटोगे फसल तुम वो जो बीज तुमने बोई
फिर हल्ला हंगामा क्यूँ
फिर रोज़ ये ड्रामा क्यूँ
की दुनिया हरामी है और लोग हैं कमीने
सच तो है बस इतना मरने में तुम उलझे हो
ये जदोजहद में आया नहीं तुम्हे जीने.

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