
कल मैं अकेले था 
तो हंसती थी ये दुनिया
आज वो अकेलापन
buddhism हो गया 
जो रौशनी मेरे 
मन को छु गई 
उसके लिए मैं 
सुंदर एक प्रिज्म हो गया 
दुनिया जिसे मेरी उपदेश मानती 
वो शब्द मेरे थे पर बोलता था कौन 
मैं तो उसी आवाज की परछाईं मात्र हूँ 
जीवन के पाठशाला का मामूली छात्र हूँ 
मैं प्रेम बाँटता बिखेरता आनंद 
मैं उसी अमृत धारा का एक अक्षय पात्र हूँ...............