01 August, 2015

गुरु मुख से जो पाया ज्ञान अर्जुन तू बड़भागी है










भ्रम की जाल जो काट दे और कर दे सत्य प्रत्यक्ष

और इशारा कर दे ताकि ज्ञात हो अंतिम लक्ष्य

जैसे कृष्णा ने अर्जुन के माया के जाल को काटा

युद्धभूमि में भी जीवन के सारतत्व को बांटा

माना युद्ध भूमि में नहीं मैं, न शत्रु ही हावी है

अंतर्मन का युद्ध निशचय ही मायावी है

गुरु मुख से जो पाया ज्ञान अर्जुन तू बड़भागी है

वही ज्ञान पाने की अब इक्षा मन में जागी है

जैसा गुरु मिला तुमको क्या मुझको मिल पायेगा

मेरे मन के कुरुक्षेत्र में क्या कृष्ण कोई आएगा

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